सोमवार, 21 दिसंबर 2009

घर्म संसद का फैसलाविश्व हिंदू परिषद ारा आयोजित घर्मसंसद ने घोषणा की है कि अगले साल १२ मार्च के बाद कोई भी शुभ मुहूर्त निकाल कर अयोया में राम मंदिर का निर्माण शुरू कर दिया जाएगा। उसने संबंघित पक्षों से कहा है कि इससे पहले मंदिर निर्माण के रास्ते में आने वाली बाघाओं को हटा लिया जाए। इस साल भर में विहिप की योजना देश भर में आयोजन करने की है ताकि मंदिर निर्माण के लिए मााहौल बनाया जा सके। विहिप की इस घोषणा का विरोघ भी हो रहा है। बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी ने तत्काल इस पर प्रतिकिया व्यक्त करते हुए इसे सुप्रीम कोर्ट की अवमानना बताया है। कमेटी ने कहा है कि उसे न्यायालय और घर्मनिरपेक्ष पार्टियों की कार्रवाई का इंतजार है। इस घर्म संसद में कुंभ में मौजूद कई अखाड़ों ने भाग नहीं लिया है और यह जता दिया है कि विहिप की घोषणा सर्वमान्य नहीं है। अखिल भारतीय हिन्दू महासभा ने भी इसका विरोघ करते हुए कहा है कि अयोया में यदि कानून का उल्लंघन कर और आम सहमति के बिना मंदिर निर्माण की प्रकिया शुरू की गई तो महासभा उसका खुलकर विरोघ करेगी।महासभा ने कहा है राम जन्म भूमि न्यास के कार्यकारी अयक्ष परमहंस दास का यह कहना कतई उचित नहीं कि वह अपने दम पर मंदिर निर्माण कर दिखाएंगे। महासभा के अनुसार कुंभनगर इलाहाबाद में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने घर्म संसद का बहिकार कर यह साफ कर दिया है कि मंदिर निर्माण के लिये अपनाई जा रही नीतियां कारगर नहींं हैं।महासभा का कहना है कि यदि मंदिर मामले को आम राय से हल करने के लिए कोई आन्दोलन चलाया जाता है तो महासभा इसमें बढ़-चढ़कर भाग लेगी अन्यथा इन संगठनों की गतिविघियों का वह सार्वजनिक तौर पर बहिकार करेगी। घर्म के नाम पर जनता की भावनाओं को उभार कर सा पाने का खेल संघ परिवार को खासा रास आ गया लगता है। उसकी राजनीतिक शाखा भाजपा ने जरूर रणनीतिगत कारणों से इस खेल से अपनी एक दूरी बनाने की कोशिश की है पर उसके पारिवारिक सदस्य माहौल बनाने में लगे हुए हैं। एक बार फिर अयोया में राम मंदिर निर्माण को लेकर आकामक शैली का अभियान शुरू करने की योजना विहिप और उसके सहयोगी संगठनों की नजर आ रही है। वह भी उस मामले में जिसमें देश के अघिकांश लोग अदालत के फैसले का इंतजार कर रहे हैं। विहिप की घर्मसंसद का फैसला हमारी नजर में सांप्रदायिक बाद में है, पहले वह इस देश के लोकतंन्न का, इस देश के संविघान का और न्यायालय की प्रतिठा का मखौल उड़ाने वाला है। विवादित जमीन का मामला जब तक अदालत में है, विहिप मंदिर बनाने की बात कैसे कह सकती है इस देश में सबको अपनी बात कहने की पर्याप्त आजादी है। लेकिन किसी की आजादी से दूसरों की आजादी आहत न हो इसके लिए कानून का प्रावघान है, न्यायालय का प्रावघान है। विहिप की घोषणा इनके अस्तित्व को नकारती है। इसे चुपचाप स्वीकार नहीं कर लिया जाना चाहिए। उसकी इस घोषणा को न्यायालय की अवमानना मानते हुए घोषणा करने वालों पर सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। अगर कोई कार्रवाई नहीं की जाती है तो यह भविय के लिए एक बहुत गलत उदाहरण बनेगा। न्यायालय की प्रतिठा पर आंच आएगी और एक अराजकता की स्थिति बनेगी जिसमें यह विश्रास करने वाले लोग होंगे कि संविघान और न्यायालय की अवमानना करके भी कार्रवाई से बचा जा सकता है। भारतीय जनता पार्टी को विहिप की घोषणा में कोई गलत बात नजर नहीं आ रही है। पार्टी के अयक्ष बंगारू लक्ष्मण इसमें अपने लिए कोई चेतावनी भी नहीं देखते। उनको भरोसा है कि सरकार बातचीत के जरिए कोई समाघान निकाल लेगी। जहां मंदिर बनाना शुरू कर देने की घमकियां दी जा रही हैं वहां यह सादगी स्वीकार की जाने योग्य नहीं है।भाजपा से तो उम्मीद नहीं की जा सकती पर कांगेस, वामंपथी दलों और कानून व घर्मनिरपेक्षता की फिक करने वाले अन्य दलों को यह देखना चाहिए कि इन सांप्रदायिक इरादों को खुला खेल न खेलने दिया जाए। उन्हें बताया जाए कि इस देश में एक संविघान है, अदालतें हैं और उनका सम्मान करने वाले लोग भी हैं। यह मानने वाले लोग भी हैं कि इनका स्थान किसी व्यक्ति, परिवार या संगठन के राजनीतिक या अन्य हितों से बहुत ऊपर है। कानून की परवाह न करने वालों को बताया जाना चाहिए कि कानून समाज में सबके हितों को यान में रखते हुए बनाए गए हैं और उनका पालन करना उन सबके लिए जरूरी है जो इसके ारा दी गयी आजादी का लाभ उठा रहे हैं। आजादी और उच्छृंखलता में अगर कुछ लोगों को फर्क समझ न आ रहा हो तो उन्हें यह फर्क समझाया जाना चाहिए और घर्मनिरपेक्ष दलों को यह जिम्मेदारी उठानी चाहिए। आज जब छोटे-छोटे मामलों में अदालतें अपनी अवमानना के मामलों पर फैसला दे रही हैं, सारे देश को प्रभावित करने वाली इस घोषणा को भी यान में लिया जाना चाहिए।

ज़मीन से जुड़ने की ज़रुरत

राज्य बनने के बाद कांगेस अयक्ष सोनिया गांघी पहली बार यहां आ रही हैं। वे यहां सूखा राहत के काम का जायजा लेंगी और एक आमसभा को संबोघित करेंगी। वे यहां ऐसे समय में आ रही हैं जब राज्य में सूखा पड़ा हुआ है। और मरवाही में उपचुनाव होने वाला है जहां मुख्यमंन्नी अजीत जोगी भी उम्मीदवार हैं। यह एक ऐसा दौर है जब केंद्र में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाला गठबंघन सा में है और कांगेस विपक्ष में। उसके सामने मुद्दे ढेर सारे हैं लेकिन शायद जिस सकियता की उम्मीद देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी से की जाती है वह देखने में नहीं आ रही है। जिस ऐतिहासिक भूमिका की उम्मीद कांगेस जैसी पार्टी से की जाती है वह भी दूर-दूर तक नजर नहीं आती है। चुनाव सामने आते हैं तो पार्टी में थोड़ी बहुत सकियता दिखाई देती है। इसके अलावा पार्टी का गैर राजनीतिक, सामाजिक जीवन में कोई काम हो, कोई भागीदारी हो ऐसा दिखाई नहीं देता। छीसगढ़ में भी कांगेस का कमोबेश यही हाल है। अकाल पीड़ितों को राहत पहुंचाने के लिए कांगेसजनों ने कोई अभियान चलाया हो, ऐसा भी नहीं। हम उनके दौरे को इसी संदर्भ में देखना चाहेंगे। यह देखना चाहेंगे कि क्या एक नए राज्य में संगठन को पार्टी अयक्ष तात्कालिक उत्साह के अलावा कोई रचनात्मक दिशा दे पाती हैं सिर्फ छीसगढ़ मंें नहीं, आज कांगेस अयक्ष से सारे देश में अपने संगठन को ऐसी दिशा देने की जरूरत है।कांगेस का एक लंबा और गौरवशाली इतिहास रहा है। उसने अंगेजी शासन के खिलाफ आंदोलन छेड़ा, देश को आजादी दिलाई। इस आंदोलन में उसने देश के कोने कोने के, सभी वगोर्ं के लोगों को जोड़ा। और विविघताओं से भरे इस देश के सब लोगों को साथ लेकर चलने की प्रवृि के कारण लंबे समय तक उसने देश का नेतृत्व भी किया। देश के करीब हर प्रदेश में आज अगर किसी पार्टी की उल्लेख करने लायक मौजूदगी है तो वह कांगेस ही है।ऐसा इसलिए है क्योंकि सबको साथ लेकर चलने की उसकी विचारघारा है जो लोगों को विविघतापूर्ण संस्कृति वाले इस देश के लिए उपयुक्त लगती है। खासतौर पर आर्थिक, सामाजिक रूप से कमजोर तबके के लोग इस विचारघारा में सुरक्षा अनुभव करते हैं। घार्मिक अल्पसंख्यकों ने भी इस विचारघारा में अपने को अघिक सुरक्षित महसूस किया है क्योंकि इसमें सभी घर्मावलंबियों के प्रति समानता का भाव है। किसी संप्रदाय के प्रति कोई दुरागह नहीं है। मगर कांगेस कमशः अपने इतिहास से दूर होती गयी है। इसका नतीजा चुनावों में साफ नजर आता है। कई राज्यों में, जहां पहले कांगेस भारी बहुमत के साथ शासन में लंबे समय तक रही है, आज वह मुकाबले मंें ही नहीं गिनी जाती। कमजोर वगोर्ं के लोगों के लिए कई-कई विकल्प अस्तित्व में आ गए हैं। घर्मनिरपेक्ष विचारघारा की पतिनिघि भी कई पार्टियां अस्तित्व में आ गयी हैं। और कांगेस का परंपरागत समर्थक वर्ग कागंेंस से दूर हुआ है। और सा में उसकी जगह घीरे-ेघीरे भारतीय जनता पार्टी ने ले ली है और विपरीत विचारघारा वाली पार्टियों से भी रणनीतिगत गठजोड़ करके आज वह केंद्र में सारूढ़ है। हमारा खयाल है कि कांगेस को, और अयक्ष होने के नाते सोनिया गांघी को इसकी वजहें ढूंढनी चाहिए। और ढूंढने की भी जरूरत नहीं। वजहें दीवार पर लिखी इबारत की तरह साफ हैं। कांगेस आज जनता के बीच जाकर, जनता को साथ लेकर, जनता के लिए काम करने वाली पार्टी के रूप में नहीं जानी जाती। वह लंबे समय तक सा में रहने के कारण सुविघाभोगी हो चुके नेताओं और उनके आसपास लाभ उठाने वालों के जमावड़े के रूप में जानी जाती है। हालांकि दीगर पार्टियों की स्थिति भी बहुत भिन्न नहीं है लेकिन कांगेस के मामले मंें यह स्थिति अघिक दुखद है क्योंकि उसका एक इतिहास है और वर्तमान में उससे अघिक जिम्मेदारी पूर्ण भूमिका की अपेक्षा है और भविय में भी रहेगी। कांगेस अयक्ष को चाहिए कि वे पार्टी को जमीन से जोड़ें। रचनात्मक कामों से जोड़ें। जनता के बीच जाकर काम करने के लिए प्रेरित करें। और पार्टी में श्रम के सम्मान की संस्कृति विकसित करें।छीसगढ़ में ही देखें। कांगेस ने सूखा पीड़ित मजदूरों के लिए क्या किया जिस समय यहां से बड़े पैमाने पर पलायन हो रहा था, पार्टी के तमाम छोटे-बड़े लोग मुख्यमंन्नी चुनने के लिए राजघानी में इकट्ठा थे। गरीबों की बस्तियों में ताला लग रहा था और मंन्नी, अफसरों के लिए बंगले सज रहे थे। और उसके बाद से अब तक पार्टी ने सूखा पीड़ित गाँवों के लिए जनता के बीच जाकर कोई मदद इकट्ठा की हो, श्रमदान किया हो, लोगों को जोड़कर कोई काम करने की कोशिश की हो, ऐसा उदाहरण नहीं है। चुनाव और सा की दौड़ से परे पार्टी का कोई काम नहीं रह गया है, कोई पहचान नहीं रह गयी है, कोई उपयोगिता नहीं रह गयी है। जनता कब तक उससे मोह लगा कर बैठे। प्रतिंी भाजपा के पारिवारिक संगठन तो फिर भी जनता के बीच जाकर काम करते रहते हैं, सामाजिक कामों से जुड़े रहते हैं। कांगेस के साथ ऐसा नहीं है। कांगेस भाजपा से नहीं तो पश्चिम बंगाल की वाममोर्चा सरकार से ही प्रेरणा ले सकती है जो जनता के बीच जाकर, जनता के लिए काम करने के कारण ही रिकॉर्ड समय तक सा में रही है और आज भी बनी हुई है। सोनिया गांघी अगर इस मृतप्राय पार्टी को जिंदगी दे सकें, उसे उद्देश्य दे सकें तो उनका यह छोटा सा दौरा सार्थक हो सकता है।

वही पुरानी आदतें

सादगी के साथ जनसेवा का नारा देने वाली छत्तीसगढ़ की पहली सरकार के बारे में सुविधाभोग और उसके लिए सरकारी सुविधाओं के दुरूपयोग की खबरें आनी शुरू हो गयी हैं। सबसे ताजा खबर यह है कि मंत्रियों के बंगलों में पेड़ पौधों को पानी देने के लिए फायर ब्रिगेड की गाड़ी बुलवाई जाती है। खबर के मुताबिक प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री के बंगले में फायर ब्रिगेड से यही काम लिया जाता है और गृह राज्य मंत्री के बंगले पर इसके अलावा फर्श धोने के लिए भी फायर ब्रिगेड की गाड़ी और अमले का इस्तेमाल होता है। कुछ दिनों पहले प्रदेश सरकार के एक और मंत्री बदरूद्दीन कुरैशी के बारे में खबर आयी थी कि अपने घर के एक विवाह समारोह में उन्होंने काफी पैसा खर्च किया था और सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग किया था। यह स्थिति तब है जब अकालग्रस्त गरीब लोगों की बदहाली की खबरें आना बंद नहीं हुई हैं। हाल ही में एक खबर छपी है कि अकाल के मारे एक गरीब मजदूर की हालत ऐसी थी कि उसके पास अपनी मृत पत्नी की लाश को घर ले जाने के लिए पैसे नहीं थे। एक मजदूर की उरप्रदेश में मौत की खबर है और एक मजदूर अस्पताल में भरती है। ये सब पिछले एक दो दिनों की खबरों में है। ऐसी खबरें लगातार आ ही रही हैं। और जो खबरें आ रही हैं वे सिर्फ एक झलक हैं उस बदहाली की जो अंचल से पलायन करने वाले हजारों मजदूर परिवारों को झेलनी पड़ रही है। एक तरफ बदहाली और दूसरी तरफ सरकारी पैसों पर अय्याशी होती रही तो सरकार की छवि खराब होते देर नहीं लगेगी और उससे जो उम्मीदें बंधी हैं वे टूट जाएंगी।
छीसगढ़ के गरीब और जरूरतमंद लोगों को अभी बहुत उम्मीदें हैं। मयप्रदेश में उपेक्षा का आरोप लगाते हुए छीसगढ़ राज्य बनाया गया है और जनता को बहुत सब्जबाग दिखाए गए हैं कि नए राज्य में वे राजघानी के अघिक करीब रहेंगे, उनकी बात सुनी जाएगी, उनकी समस्याओं का समाघान होगा, उनके साथ अन्याय नहीं होगा। अपना नेतृत्व होगा तो वह अपने लोगों के हितों के लिए काम करेगा। हमने तब भी इन सब्जबागों से सावघान रहने की चेतावनी दी थी और यह आशंका जताई थी कि मयप्रदेश की राजघानी की संस्कृति जस की तस छीसगढ़ की राजघानी में चली आएगी अगर यान नहीं दिया गया। जो खबरें आ रही हैं उनके मुताबिक ठीक यही हो रहा है। इसकी झलक तभी मिल गयी थी जब राज्य का मुख्यमंन्नी चुनने के लिए छोटे बड़े नेता अकाल का नाम तक भूल कर राजघानी में इकट्ठा थे। और राजघानी भी करोड़ों खर्च कर सजाई गयी थी। मंन्नियों के लिए बंगले सजाए गए थे। मुख्यमंन्नी के नाम से भी एक बंगला लाखों खर्च कर सजाया गया था। नेताओं के लिए न तब अकाल था न अब है। राज्य बनने से पहले जो भोपाल में डले रहते थे वे अब रायपुर में डले नजर आएं तो हैरानी नहीं होनी चाहिए। और जिस अय्याशी के भोपाल के बंगलों मंें रहा जाता था उसी तरह रायपुर के बंगलों में रहा जाए तो अचरज नहीं होना चाहिए। लेकिन तब इस सरकार से वे उम्मीदें भी नहीं रहेंगी जो मुख्यमंन्नी अजीत जोगी ने जगाई है्‌ं।मुख्यमंन्नी बनने के बाद उन्होंने बार बार यह कहा कि वे इस अमीर राज्य की जनता को अमीर बनाना अपनी सबसे बड़ी प्राथमिकता मान कर चल रहे हैं। और फौरी तौर पर उन्होंने अपनी पाथमिकता अकाल से निबटने को बताया था। अपने मंन्नियों को सादगी से रहने की प्रेरणा उन्होंने दी थी और लाखों खर्च कर सजाए गए अपने बंगले में रहने नहीं गए। बाद में विघानसभा में उन्होंने अपने उन दिनों को याद किया था जब गरीबी और अभाव को उन्होंने झेला था। अपने साक्षात्कारों में, भाषणों में उन्होंने बार बार यह अहसास दिलाने की कोशिश की है कि वे इस उपेक्षित इलाके के उपेक्षित लोगों के दर्द को समझते हैं, उसकी दवा जानते हैं और यह दवा वे उन्हे ंउपलब्घ भी कराएंगे। लोग उनकी सरकार से उम्मीद लगाकर बैठे हैं कि वह नए ढंग से काम करेगी।
लेकिन सरकार के कुछ पुराने मंन्नियों की पुरानी आदतों और नए मंन्नियों की नई आदतों के चलते यह उम्मीद टूटती नजर आ रही है। जो खबरें आ रही हैं उनसे लगता है कि इस सरकार के मंन्नी भी दूसरी सरकारों के मंन्नियों की तरह अपने फायदे के लिए काम करने वाले हैं। जनता के हित की उन्हें चिंता नहीं है। जनता के बीच जाकर, जनता की तरह रहते हुए जनता के लिए काम करने वाले लोग ये नहीं हैं। ये वही बंगलों में रहने वाले लोग हैं जिनके दरवाजांें के भीतर जाने की हिम्मत हर गरीब आदमी नहीं कर सकता। राजघानी अभी भी गरीबों की पहुंच से उतनी ही दूर है जितनी पहले थी। मुख्यमंन्नी को इसकी फिक करनी चाहिए। अपने अनुभव से वे जानते हैं कि लोकतंन्न में जनता की राय का कितना महत्व होता है, यह बात वे कई बार कह चुके हैं। वे यह भी जानते होंगे कि जनता बहुत कुछ देखती रहती है और उसके बारे में अपनी राय बनाती रहती है। सरकार के मंन्नियों के आचरण पर भी उसकी नजर है। इससे अगर उसके दिल में गुस्सा सुलगेगा तो वह बगीचों में पानी देने वाली दमकल से नहीं बुझाया सकेगा।