बुधवार, 9 जून 2010

प्यार में भीगा मौसम

यात्रा का अंतिम चरण जशपुर में पूरा हुआ। जिन लोगों ने पहले जशपुर नहीं देखा था, उन्हें बताया गया था कि यह बेहद खूबसूरत इलाका है। पहाड़ों और झरनों से भरपूर। लोगों ने गलत नहीं बताया था। कुछ लोगों ने पहली बार पर्वतों को चूमते बादल देखे। यह दृश्य अद्भुत होता है। कुछ कुछ ऐसा मानो चाय के प्याले से भाप उठ रही हो। पर्वतों की श्रंृखलाएं यात्रियों का स्वागत करते चलती हैं। गहरी गहरी घाटियां प्रकृति के विराट स्वरूप के दर्शन कराती हैं।
यात्रा एक बेहद खूबसूरत मौसम में जशपुर इलाके से गुजरी। यह बारिश से भीगा मौसम था, चारो ओर हरियाली छाई थी, चिलचिलाती धूप और लू का नामोनिशान नहीं था। यात्रा के पहले चरण में अगर धूप के बावजूद हजारों लोग सभाओं में जुटते रहे तो अंतिम चरण में उन्होंने बारिश की परवाह नहीं की। बस्तर की यादें ताजा हो गईं।
मनेंद्रगढ़ में लोगों को अपेक्षा थी कि मनेंद्रगढ़ को कोरिया जिले का मुख्यालय घोषित किया जाएगा। यह इस इलाके की पुरानी मांग है। मुख्यमंत्री ने उन्हें बताया कि यह फिलहाल प्रक्रिया में नहीं है। इससे लोगों में निराशा थी लेकिन साफ बात यह थी कि उन्हें कोई गलत आश्वासन नहीं मिला था।
मनेंद्रगढ़ से आगे बढ़ते ही बारिश शुरू हो गई। लगा कि आगे की सभाओं का क्या होगा? मगर  सभाओं के दौरान अमूमन बारिश रुक जाती रही।  हल्की फुल्की बौछारों की तो लोगों ने वैसे भी परवाह नहीं की।
मुख्यमंत्री से यह सवाल लगातार किया जाता रहा कि उनकी सभाओं में जो भीड़ जुट रही है, क्या वह सरकारी तंत्र द्वारा जुटाई गई भीड़ नहीं है? मनेंद्रगढ़ से बैकुंठपुर के बीच एक पत्रकार ने उनसे यही सवाल किया। मुख्यमंत्री ने याद दिलाया कि यात्रा का स्वागत निर्धारित जगहों पर ही नहीं हो रहा, रास्ते में भी जगह जगह लोग उनसे मिल रहे हैं और यात्रा का स्वागत कर रहे हैं। सरकार की योजनाओं को जो समर्थन मिल रहा है वह लोगों की संख्या ही से नहीं, उनके उत्साह से भी प्रकट होता है। लोग जिस गर्मजोशी से उनसे मिल रहे हैं, वह जुटाई गई भीड़ की गर्मजोशी नहीं है। मुख्यमंत्री का कहना था कि उन्होंने बहुत सी यात्राएं देखी हैं और की भी हैं। लेकिन ऐसा उत्साह पहली बार देख रहे हैं।
मुख्यमंत्री से और भी तरह तरह के सवाल किए जाते रहे। भटगांव में पत्रवार्ता में उनसे पूछा गया कि प्रदेश सरकार बहुत सी जनकल्याणकारी योजनाओं पर जो पैसा खर्च कर रही है, वह तो केंद्र सरकार का है? मुख्यमंत्री ने कहा- पैसा न तेरा है न मेरा है, वह जनता का है और उसी के लिए खर्च किया जा रहा है। योजनाओं के क्रियान्वयन के संबंध में मिल रही छोटी बड़ी शिकायतों के सवाल पर उन्होंने चुटकी ली- शिकायतें तो राम राज्य में भी थीं, यह तो रमन राज है। फिर उन्होंने कहा- हम हालात को बेहतर करने की कोशिश करते आ रहे हैं, आगे भी करते रहेंगे।
तीन रुपया किलो चावल वाली योजना भाजपा सरकार की सबसे लोकप्रिय योजना के रूप में सामने आई। पूरी यात्रा के दौरान एक भी इलाका ऐसा नहीं मिला जहां इस योजना का लाभ नहीं पहुंच रहा है। पात्र लोगों के कार्ड न बनने और अपात्रों के नाम सूची में होने की शिकायतें जरूर मिलती रहीं लेकिन मुख्यमंत्री इसे स्वीकारते रहे और उन्होंने कहा कि इसे ठीक करने के लिए कहा जा चुका है। विपक्ष के कुछ नेताओं ने इस योजना को गरीबों का अपमान कहा है- इस पर पूरी यात्रा के दौरान डा. रमन सिंह चोट करते रहे। रिमझिम बारिश के बीच बैकुंठपुर की सभा में भी ्रउन्होंने कहा कि तीन रुपया किलो में चावल पाना जनता का अपमान नहीं, उसका हक है। यहां के लोग जमकर मेहनत करते हैं और जमकर खाना उनका अधिकार है।
कांग्रेस को वे लगातार कटघरे में खड़ा करते रहे। उन्होंने हर सभा में दावा किया कि ज्यादातर कांग्रेस के नेतृत्व वाले पिछले पचास बरस को देखें और पिछले साढ़े चार साल में छत्तीसगढ़ में होने वाले विकास को देखें तो पचास बरस पर साढ़े चार बरस में हुआ विकास भारी पड़ेगा।
जशपुर के घने जंगलों और पर्वतों-घाटियों के बीच से जब यात्रा गुजर रही थी तो सड़क किनारे आम बेचती चार महिलाओं से हमारी बात हुई। सरकार की कई जनकल्याणकारी योजनाओं से वे वाकिफ थीं। उनमें से कुछ ने स्कूल की पढ़ाई की थी। उनकी राजनीतिक चेतना के हम कायल हुए। उनसे पिछले और अभी के मुख्यमंत्री की तुलना करने को कहा गया तो उन्होंने कोई सीधा जवाब नहीं दिया। एक बोली-मुख्यमंत्री को अच्छा काम करना ही चाहिए। इसीलिए तो वे मुख्यमंत्री बनाए जाते हैं। एक और मौके पर एक तेज तर्रार बूढ़े ने कहा- सवा तीन रुपए मेंं सरकार चल रही है। उसका आशय तीन रुपया किलो चावल और पचीस पैसे किलो नमक से था। सरकार के कामकाज को लेकर ऐसी प्रतिक्रियाएं हमें रास्ते भर सुनने को मिलती रहीं। तीन रुपया किलो चावल हमें लगा कि सबसे लोकप्रिय योजना है। इसके हितग्राही प्रदेश के कोने कोने में हैं। यह जनता के लिए बहुत उपयोगी है। कोई भी गरीब परिवार इसे पाकर खुश ही होगा।
जशपुर में हम सभा से पहले पहुंच गए। सभास्थल की ओर जाने वाली सड़क विकास यात्रा के स्वागत के लिए सजी धजी हुई थी। हल्की बारिश हो रही थी, सड़क पर दूर तक छतरियां ही छतरियां दिखाई दे रही थीं। जितने लोग छतरियां लेकर खड़े थे, उनसे कई गुना ज्यादा लोग बगैर छतरियों के जमे हुए थे। दर्जनों नर्तक दल बारिश में भीगते हुए नाच रहे थे। बीस बीस किलो के नगाड़े गर्दन से लटकाए वादक पूरे जोश से उन्हें बजा रहे थे। यात्रा के आने में करीब घंटे भर की देर थी। और लोगों ने बताया कि नाच गान का यह सिलसिला सुबह से चल रहा है। सभा स्टेडियम में होनी थी। हमें लगा कि बारिश और देरी की वजह से शायद कम ही लोग रहेंगे। लेकिन हजारों लोग वहां मौजूद थे। एक पुलिसवाले ने बताया कि ये लोग सुबह से जमा हैं। कुछ तो रात में ही आ गए थे। पुलिसवाला खुद दोपहर से खड़ा था।
विकास यात्रा सभा स्थल पर पहुंची तो स्टेडियम में भीड़ बढऩे लगी। मैदान और गैलरियां खचाखच भर गईं। मंच पर उपस्थित नेताओं की खुशी उनके संबोधनों में झलकी। सबने लोगों के इस प्यार और समर्थन की प्रशंसा की, इसके लिए धन्यवाद दिया। रविशंकर प्रसाद, दिलीपसिंह जूदेव, राजनाथ सिंह और सबसे आखिर में डा. रमन सिंह बोले। राष्टï्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह विकास यात्रा को मिले इस प्यार और समर्थन को देखकर अभिभूत थे। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में पैसे की नहीं, पसीने की इज्जत होनी चाहिए, प्रदेश सरकार यही कर रही है और इसीलिए जनता का इतना प्यार मिल रहा है। देश के दूसरे प्रदेशों की तुलना में छत्तीसगढ़ में हो रहे विकास को उन्होंने बेजोड़ बताया और यह भी कह डाला कि एक मुख्यमंत्री के रूप में डा. रमन सिंह उनसे भी बेहतर काम कर रहे हैं। उन्होंने महंगाई का मुद्दा उठाया और याद दिलाया कि अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में, विषम परिस्थितियों में भी महंगाई नियंत्रित थी। अगर महंगाई पर लगाम लगानी है तो केंद्र में एक बार फिर भाजपा की सरकार बनानी होगी, लालकृष्ण आडवाणी को प्रधानमंत्री बनाना होगा और प्रदेश में यह विकास यात्रा निरंतर चलती रहे, इसके लिए डा. रमन सिंह को एक बार फिर मुख्यमंत्री बनाना होगा। अंचल के लोकप्रिय नेता दिलीप सिंह जूदेव जब भाषण देने के लिए खड़े हुए तो स्टेडियम जय जूदेव के नारों से गूंज उठा। वैसे तो उनकी लोकप्रियता छत्तीसगढ़ के हर इलाके में है लेकिन जशपुर में बात ही कुछ और है। श्री जूदेव ने भी डा. रमन सिंह की संवेदनशीलता और उदारता की तारीफ की। उन्होंने बताया कि जशपुर से जितनी बार मुख्यमंत्री के दरबार में फरियादें पहुंचीं, मुख्यमंत्री ने कभी निराश नहीं किया।
दूसरे दिन पे्रस कांफ्रेंस के बाद हम लौटे। रास्ते भर विकास यात्रा के दृश्य याद आते रहे। और मुख्यमंत्री के शब्द कानों में गूंजते रहे कि प्रदेश में विकास की यात्रा यहीं थमने वाली नहीं है। यह पिछले साढ़े चार बरस से चल रही है और जनता ने चाहा तो आगे भी इसी तरह चलती रहेगी।

(डा. रमन सिंह के पहले कार्यकाल में हुई विकास यात्रा से लौट कर लिखी गई टिप्पणी)

बस्तर को ढूंढ़ती रहीं निगाहें

विकास यात्रा का दूसरा चरण अभी पूरा नहीं हुआ है। कल इसने बलौदाबाजार में अस्थायी विराम लिया है। कुछ दिनों में यह सफर फिर शुरू हो जाएगा। गांवों शहरों से गुजरते हुए, नए नए अनुभवों के साथ।
प्रदेश सरकार की इस विकास यात्रा के समानांतर एक और यात्रा चल रही है। यह यात्रा है डाक्टर रमन सिंह के राजनेता से जननेता बनने की। एक जबरदस्त प्रदेश व्यापी जनसमर्थन उन्हें मिलता दिख रहा है। लोग उनकी एक झलक पाने के लिए दौड़ रहे हैं। उनसे हाथ मिलाने की होड़ लगी है। उन्हें छू लेने की ललक में हाथ बढ़ रहे हैं। एक गांव में किसी ने डाक्टर साहब के हाथ पकड़ लिए तो उन्हें कहना पड़ा- अरे भाई हाथ तो छोड़ो। लोग उन्हें छोडऩा नहीं चाह रहे। विकास रथ की खिड़की से झांकते डाक्टर रमन सिंह को देखकर लोग कितने रोमांचित हो रहे हैं यह इन दृश्यों को देखकर ही जाना जा सकता है।
बात हो रही थी डा. रमन सिंह के जन नेता बनने की। अगर अब तक वे पार्टी के आला नेताओं की पसंद थे तो यह यात्रा उन्हें जन जन के नेता के रूप में स्थापित करती चल रही है। बल्कि यह कहना अधिक ठीक होगा कि यह यात्रा इस बात पर से परदा हटाते चल रही है कि डाक्टर साहब जन जन के प्रिय नेता बन चुके हैं। पार्टी के उच्च पदस्थ रणनीतिकार बताते हैं- पार्टी के भीतर डा. रमन सिंह के नेतृत्व को मिलने वाली चुनौतियां इस यात्रा के साथ साथ क्षीण होती जा रही हैं। मन से या बेमन से, पार्टी के नेता चुनाव तक इस नेतृत्व की अनिवार्यता को स्वीकार करते चल रहे हैं।
यात्रा को बीच बीच में बारिश की फुहारें मिल रही हैं लेकिन आमतौर पर झुलसाने वाली दोपहरियां ही मिल रही हैं। सुबह स्थानीय पत्रकारों से चर्चा के बाद जब यात्रा शुरू होती है तो धूप चढ़ चुकी होती है। फिर शुरू होता है जगह जगह स्वागत का सिलसिला। कहीं खुली खिड़की से लोग डाक्टर साहब से मिल लेते हैं तो कहीं लिफ्ट के जरिए डाक्टर साहब ऊपर आ जाते हैं। यात्रा धीमी गति से चल रही है। गाड़ी चलाने वालों का कहना है कि ऐसी यात्रा थका देती है। रथ के आगे पीछे मिलाकर कोई पचास गाडिय़ां चलती रहती हैं। किसी कार रेस जैसा दृश्य दिखता है। जहां रथ रुका, पीछे चलती गाडिय़ों से तुरंत कमांडो कूदकर रथ को घेर लेते हैं। अति उत्साही लोगों को नियंत्रित करते हैं। लेकिन डाक्टर साहब इतनी सुरक्षा के बाद भी लोगों से मिल ही लेते हैं। उनसे हाथ मिला लेते हैं, उनसे फूलमालाएं ले लेते हैं।
महासमुंद के आगे, सरायपाली के रास्ते में उन्हें साइकिल लिए लड़कियों का एक समूह मिल गया। वे मुख्यमंत्री को साइकिल के लिए धन्यवाद कहना चाहती थीं। यह मुलाकात हो सकता है प्रायोजित हो लेकिन थी बहुत मर्मस्पर्शी। डाक्टर साहब लड़कियों के सिर पर हाथ फेरते हुए वात्सल्य से भरे नजर आए। लगता था वे सचमुच अपनी बेटियों से मिल रहे हैं। उन्होंने कहा-एक बेटी चेन्नई में है और इतनी सारी यहां मिल गईं। कुछ समय पहले श्रीमती वीणा सिंह का इंटरव्यू लिया था। इसमें उन्होंने बताया था कि डाक्टर साहब अपनी बिटिया से बहुत प्यार करते हैं। कितना भी तनाव हो, बेटी से बात करके काफूर हो जाता है। इन स्कूली लड़कियों को आश्ीर्वाद देते हुए डाक्टर साहब को निश्चित रूप से अपनी बेटी की याद आ रही थी। यह उनकी आंखों में उमड़ते प्यार को देखकर समझा जा सकता था। उनकी आवाज में भी बेटियों से मिलने की खुशी घुली हुई थी। बहुत से लोग कहते हैं कि मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाला और चार साल सरकार चला लेने वाला आदमी सीधा सादा नहीं हो सकता। लेकिन डाक्टर साहब से कुछ मुलाकातों के बाद लगता है कि उनके भीतर मानवीय संवेदनाएं किसी भी आम आदमी की तरह मौजूद हैं और महफूज भी।
यात्रा के दूसरे चरण में एक महत्वपूर्ण बात यह रही कि लोग लगातार बस्तर को याद करते रहे। कई जगहों पर ठीक ठाक भीड़ वाली आम सभाएं हुईं लेकिन वह मजा नहीं आया जो बस्तर में था। मैदानी इलाके में वह सरलता नहीं मिल रही है। मैनपुर गरियाबंद में कुछ कुछ माहौल बस्तर जैसा रहा लेकिन वह बात नहीं थी। काफिला आगे बढ़ा तो राजनीति की एक और ही शक्ल सामने आती गई। धनबल की भूमिका दिखने लगी। धनबल के कारण जो अनुशासनहीनता आती है वह भी दिखने लगी। इसे बड़े नेता कार्यकर्ताओं का अतिउत्साह कहते हैं। लेकिन यह इतनी मासूम चीज नहीं है।
सरायपाली से डा. रमन सिंह सुबह यात्रा पर रवाना हुए तो कुछ देर के लिए एक स्थानीय नेता के घर रुके। इसे लेकर कुछ लोगों से चर्चा हुई। कुछ का कहना था कि ये मशहूर डॉक्टर हैं और डाक्टर साहब के मित्र हैं। कुछ ने कहा कि डाक्टर साहब अभी तक किसी गरीब की कुटिया में नहीं गए हैं। संपन्न आदमी के घर जाने से अच्छा संदेश नहीं जाएगा। तीन रुपया किलो चावल देेने वाले मुख्यमंत्री को यात्रा के दौरान किसी के घर नहीं जाना था। कुछ लोगों ने कहा-यह चुनावी राजनीति की मजबूरी है। चुनाव के लिए पैसा तो संपन्न लोगों से ही मिलता है।
बलौदाबाजार की सभा के बाद सबको घर जाने की जल्दी थी। मुख्यमंत्री भोजन किए बगैर लौटे। चर्चा थी कि इतना थकने के बाद वे घर जाकर आराम करना चाहते होंगे। घर घर ही होता है। घर का कोई विकल्प नहीं होता। लेकिन बाद में पता चला कि सुबह डाक्टर साहब को दिल्ली जाना है। किसी को भी अचरज हो सकता है कि मुख्यमंत्री आराम कब करते होंगे, पढ़ते लिखते कब होंगे? यात्रा के साथ चल रहे दूसरे लोगों को थकने का हक नहीं है। उनका नेता खुद बिना थके आगे आगे चल रहा है।

(डा. रमन सिंह के पहले कार्यकाल में हुई विकास यात्रा से लौट कर लिखी गई टिप्पणी)

चिलचिलाती धूप में चार कदम

दंतेवाड़ा से चार दिन पहले चिलचिलाती धूप में एक यात्रा शुरू हुई है। अभाव और संघर्ष में जीने वाले बस्तर के लोग धूप में यात्राओं के आदी हैं लेकिन यह यात्रा एक ऐसे व्यक्ति के नेतृत्व में हो रही है जिसकी सब सुखों तक पहुंच है। वह चाहे तो आराम से छांव में दोपहरी काट सकता है। मगर उसने जो जिम्मेदारी कंधों पर उठा रखी है, उसका तकाजा है कि वह धूप में घूम घूम कर देखे कि जनता का काम हो रहा है कि नहीं?
डा. रमन सिंह और उनके साथी इन दिनों विकास यात्रा पर हैं। खुद डा. रमन सिंह के शब्दों में, चार साल पहले दंतेश्वरी माई का आशीर्वाद लेकर उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में काम शुरू किया था। यात्रा के पहले दिन, वे एक बार फिर माई के दरबार में चार साल का हिसाब देने के लिए खड़े हुए थे। और यह संकल्प लेने के लिए भी कि अब तक जो काम किया है, उसे आगे और बेहतर ढंग से कर सकें।
उनका बस चलता तो शायद वे यात्रा के लिए कोई और मौसम चुन लेते। लेकिन चुनाव उन्हें चुनने का मौका नहीं देगा। बहुत से कामों के भूमिपूजन, शिलान्यास और लोकार्पण के लिए उनके पास अधिक समय नहीं है। वे इन कामों को एक साथ निबटा रहे हैं। जनता को अपनी सरकार की उपलब्धियों की याद दिला रहे हैं, यह समझा रहे हैं कि कौन सी चीज महंगी होने के लिए कौन जिम्मेदार है। और कौन सी चीज सस्ते में मिलने के लिए जनता को किसका शुक्रगुजार होना चाहिए।
राजा को अच्छा होना भी चाहिए और अच्छा दिखना भी चाहिए।
यात्रा की शुरुआत माई दंतेश्वरी के मंदिर से हुई। कमांडो से घिरे मंदिर में पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के साथ डा. रमन सिंह ने देवी की पूजा-अर्चना की। दंतेश्वरी वैसे तो पूरे छत्तीसगढ़ में अनेक जगह विराजित हैं लेकिन बस्तरवासियों के तो वे दिल में बसती हैं। वहां से यात्रा की शुरुआत मतलब माई का आशीर्वाद और बस्तरवासियों का समर्थन एक साथ पा लेना।
पहली सभा दंतेवाड़ा में हुई, उसमें जून की दोपहर में मेले जैसा माहौल था। लोगों के जत्थे पर जत्थे चले आ रहे थे। कुछ के पैरों में चप्पलें थीं, लेकिन ज्यादातर नंगे पांव। शहर के लोग कंकड़ों पर नंगे पांव चलने का दुस्साहस नहीं कर सकते। यह गांव जंगल के लोगों का ही जीवट है। दूर दूर से पैदल चले आते इन लोगों को देखकर शहरियों को शर्म आ जानी चाहिए जो सेहत की तरह तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं और तरह तरह की दवाएं खाकर जी रहे हैं। यह कितना अजीब है कि यह तबका खुद को विकसित और आदिवासियों को पिछड़ा समझता है।
यात्रा की योजना बनाते समय यह बात उठी थी कि इस भीषण गर्मी में कौन मुख्यमंत्री को देखने सुनने आएगा? लेकिन पहले चरण में यह आशंका अप्रत्याशित रूप से एकदम गलत साबित हुई है। खुद मुख्यमंत्री का कहना है कि उनके और उनके सहयोगियों के सारे अनुमान फेल हो गए। यात्रा के साथ जुट रहे भारतीय जनता पार्टी के लोगों को खुद भी इतनी भीड़ जुटने की उम्मीद नहीं थी। वे उत्साहित से ज्यादा चमत्कृत हैं। कुछ अनुभवी लोगों का कहना है कि यात्राएं और भीड़ तो उन्होंने पहले भी देखी है लेकिन इस बार लोगों की बॉडी लैंग्वेज कुछ और ही है। उसमें प्यार भी है, उम्मीद भी और भरोसा भी।
यात्रा का रास्ते भर उत्सुकता और उत्साह से भरे लोगों ने हाथ हिला हिला कर स्वागत किया और ऐसी ही विदाई भी दी। फूलों के हार और पंखुरियों से भरे थाल लेकर महिलाओं की लंबी कतारें घंटों इंतजार के बाद भी थकी हुई नहीं लगीं। घरों की चौखट, खिड़कियों, और छतों से लोगों ने यात्रा को सिर्फ देखा नहीं, हाथ भी हिलाए। यात्रा के दौरान लगातार यह अहसास बना रहा कि हम एक लोकप्रिय आदमी की यात्रा में शामिल हैं।
राजनीति के अनुभवी लोगों के बीच भीड़ जुटाने के कौशल पर भी चर्चा चलती रही। लेकिन वह मुद्दा नहीं बन सका। वैसे अगर भाजपा के संगठन ने यह भीड़ जमा की है तो भी यह पार्टी के लिए खुशी का विषय हो सकता है। इससे संगठन की सक्रियता और सामथ्र्य का पता चलता है। यह भीड़ सीधे वोटों में तब्दील होगी कि नहीं, इस पर भी चर्चा चलती रही। लेकिन भाजपा के कुछ बड़े नेताओं ने संयम का परिचय देते हुए कहा कि वे अतिउत्साह में आकर कोई राय नहीं बना रहे हैं। चुनाव में अभी समय है और जैसा कि मुख्यमंत्री ने अपने साक्षात्कार में कहा कि वे कांग्रेस को हल्के से नहीं लेते, उसे एक गंभीर चुनौती मानते हैं।
यात्रा में आम सभाओं और स्वागत सभाओं की जगहें निर्धारित हैं। लेकिन कई जगह भीड़ देखकर मुख्यमंत्री का काफिला रुक भी रहा है। पड़ाव दर पड़ाव उनके भाषण में नई चीजें जुड़ती जा रही हैं। यात्रा के दूसरे तीसरे दिन दो बूढ़ी महिलाओं की बातचीत का किस्सा इसमें शामिल हो गया। मुख्यमंत्री इस किस्से के जरिए बताते हैं कि लोग अब उन्हें तीन रुपए वाला डाक्टर रमन और पचीस पैसे वाले डाक्टर रमन के रूप में जानने लगे हैं। प्रदेश सरकार को महंगाई के लिए जिम्मेदार बताने के प्रचार से दुखी होते हुए उन्होंने दुर्ग की एक आमसभा में कहा-दाढ़ी वाला गलती करिस, मेछा वाले ला सजा हो गे। उनकी चुटीली बातों पर ठहाके लग रहे हैं। बहुत जगहों पर लोग स्वागत के लिए खड़े रह जा रहे हैं और काफिला निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक आगे निकल जा रहा है। उन्हें जुटाने वाले लोगों को सफाई देनी पड़ रही है, माफी मांगनी पड़ रही है। ऐसा एक एनाउंसमेंट हमने चलते चलते सुना।
कच्चे रास्तों, टूटे फूटे घरों और गरीब लोगों के बीच से गुजरते एसी गाडिय़ों के काफिले को देखकर मन में आता है कि यह लोकतंत्र की कैसी तस्वीर है? लेकिन फिर जहां काफिला रुकता है, जनता वहां भीड़ की शक्ल में, हाथों में फूल लिए मौजूद मिलती है। प्रदेश में जनता के पास वैसे भी विकल्प सीमित हैं। और सभी एसी गाडिय़ों वाले हैं। जनता को उन्हीं के बीच अपनी उम्मीद के लिए सहारा ढूंढना है। इस यात्रा में वह डा. रमन सिंह में यह सहारा ढूंढती नजर आती है।

(डा. रमन सिंह के पहले कार्यकाल में हुई विकास यात्रा से लौटकर लिखी गई टिप्पणी)