बुधवार, 28 मार्च 2012

बारिश मुझे माफ करना



आज जमकर बारिश हुई। बाहर निकलने का मन हुआ। मगर निकल न सका।
भीगना चाहता था मगर किससे कहता।
कहता तो सुनने को मिलता -बीमार पड़ जाओगे। पागल हो क्या। क्या मिलेगा बारिश में भीगकर। भीगो, हमें क्या करना है।

एक बार जमकर भीगा था बारिश में। दोस्त को उसके घर छोडऩे गया था। लौटा तो जबरदस्त पानी था। मैंने तय किया कि कहीं रुकूंगा नहीं। रास्ते भर भीगते गया। इतनी देर तक, इतने बड़े फव्वारे के नीचे कभी नहीं नहाया था। यह एक ऐसा अनुभव था जिसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। आसमान मुझे नहला रहा था। पेड़ मेरे साथ नहा रहे थे। धरती मेरे साथ नहा रही थी। मैंने पहली बार जाना कि प्रकृति कितनी विराट और उदार है।

मैं फुटबॉल खेलते हुए भी खूब भीगा हूं। बारिश में खेल रुकता नहीं था। घास के मैदान में छप छप करते खेलते रहते थे। वे दिन बहुत पीछे छूट गए। हमने बारिश के पानी में कागज की कश्तियां भी बहुत चलायी हैं। उन दिनों की भी धुंधली सी यादें ही रह गयी हैं।

कभी हम लोग कच्ची छत वाले मकान में रहते थे। बारिश के दिनों में छत टपकती थी। सामान इधर से उधर करना पड़ता था। जहां जहां पानी टपकता था, नीचे खाली बर्तन रखने पड़ते थे। बिस्तर पर पानी टपकता था और सोना मुश्किल हो जाता था। पक्की छत के नीचे रहते हुए अब उन दिनों की याद भी नहीं आती।

आज भी बारिश में भीगने का मन जरूर होता है लेकिन मन मसोस कर रह जाना पड़ता है। साथ साथ भीगने वाले दोस्त अब साथ नहीं रहे। नौकरी ऐसी है कि कई बार दफ्तर से बाहर निकलकर पता चलता है कि जबरदस्त बारिश हो चुकी है। बच्चों को बारिश में खेलते देखकर खुश होने वाले बुजुर्ग भी अब नहीं रहे। बारिश अब भी होती है। हमीं घर से बाहर नहीं निकल पाते।

केदारनाथ अग्रवाल की एक कविता में कहा गया है कि सूरज डूबता नहीं है। घूमती हुई पृथ्वी खुद उसकी ओर से मुंह फेर लेती है। मेरे खयाल से हम सब ऐसे ही हैं। आसपास खुशियां बरसती रहती हैं और हमसे दामन तक नहीं फैलाया जाता।

बारिश के बहुत से दृश्य मैंने सिर्फ अखबारों में देखे हैं। मेरा शहर नदी के किनारे है मगर मैंने आज तक उमड़ती हुई नदी नहीं देखी। मेरा इलाका किसानों का है और मैंने कभी पानी से भरे धान के खेतों में काम नहीं किया। मेरे शहर की कई बस्तियां इस बार भी बारिश के पानी में डूब जाएंगी पर मैं उन्हें नहीं देख पाऊंगा।

बारिश के बारे में कहने के लिए मेरे पास बहुत बातें नहीं हैं। जिसने बारिश को ज्यादातर अपनी खिडक़ी से देखा हो वह उसके बारे में और कितना जान सकता है?

(कई साल पहले बारिश को देखते हुए लिखा गया)