गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010
किकेट के बेन जानसन
खेल जगत में अभी बुरी खबरों का सिलसिला खत्म नहीं हुआ है। और ये खबरें किकेट और किकेटरों के बारे में ही हैं। खेल मंन्नालय ने उन किकेटरों से अर्जुन पुरस्कार वापस लेने का इरादा व्यक्त किया है जिन पर मैच फिक्सिंग में आरोप साबित हुए हैं।बोर्ड ने इन दोषी खिलाड़ियों को पांच साल के लिए प्रतिबंघित भी कर दिया है।मोहम्मद अजहरूद्दीन, मनोज प्रभाकर और अजय जडेजा ऐसे खिलाड़ी हैं जिनको अर्जुन पुरस्कार मिल चुका है और जिनको किकेट बोर्ड और सीबीआई की जांच में दोषी पाया गया है। खेल मंन्नालय ने कोई कार्रवाई करने के पहले इन खिलाड़ियों को अपना पक्ष रखने का मौका दिया था लेकिन तीनों ही खिलाड़ियों ने इसके लिए बनाए गए आयोग के सामने पेश होना जरूरी नहीं समझा। खबर है कि ये सभी खिलाड़ी खेल मंन्नालय के इस प्रस्तावित फैसले के खिलाफ अदालत में जाने का मन बना रहे हैं। मनोज प्रभाकर ने तो बाकायदा चुनौती दी है कि खेल मंन्नालय उनका पुरस्कार वापस लेकर तो दिखाए। उनका कहना है कि उन्होंने ऐसा कोई काम नहीं किया है जिसके कारण उनसे उनका पुरस्कार वापस लिया जाए। मनोज प्रभाकर अगर यह कह रहे हैं कि उन्होंने कुछ गलत नहीं किया है तो उनका अपना पक्ष है। लेकिन सीबीआई और किकेट बोर्ड की जांच का नतीजा है कि वे और उनके साथी खिलाड़ी दोषी हैं। और उन पर कार्रवाई उनके दोषी साबित होने के आघार पर की जा रही है। ऐसे में हमारा मानना है कि कार्रवाई सही है और दोषी खिलाड़ियों को पूर्व में दिए गए सम्मान वापस ले लिए जाने चाहिए। उनके इन तकोर्ं से हम सहमत नहीं हैं कि ये सम्मान उन्हें अपने प्रदर्शन के आघार पर दिया गया है और इस पर उनका हक है। सम्मान की यह अवघारणा सही नहीं है। पुरस्कार पाने की प्रशासनिक प्रकिया और पैसे कमाने के लिए खेलने की व्यावसायिक सोच - इन सब बातों ने मिलकर सम्मान के बारे में इस नयी अवघारणा को जन्म दिया है। खिलाड़ी को देश की ओर से दिया गया सम्मान उसके ारा खेल से कमाए गए पैसे से अलग चीज है। उसका महत्व खिलाड़ी की निजी संपि होने से ज्यादा है। राट्रीय पुरस्कार उन लोगों को दिए जाते हैं जो राट्रीय गौरव का विषय होते हैं। वे राट्रीय गौरव के रूप में इतिहास में दर्ज होते हैं। पीढ़ियां उनसे सबक लेती हैं। किसी सम्मान का महत्व किसी पेंशन की तरह थोड़े समय बाद खत्म नहीं हो जाता। इस बारे में दोषी साबित खिलाड़ियों की राय अलग हो सकती है पर हमारा मानना है कि जो खिलाड़ी देश की तरफ से सम्मानित होते हैं, जनता जिन्हें सर आंखों पर बिठाती है उनके लिए वे भी उタातर जीवन मूल्यों के उदाहरण पेश करें। मगर कम खिलाड़ी हैं जो इसका यान रखते हैं। बहुत कम खिलाड़ियों का जीवन ऐसा है जिसे अनुकरणीय माना जाए। सादगी और शिटाचार का जीवन जीने वाले खिलाड़ियों की संख्या घटती जा रही है। मीडिया की नजरें जब और तेज होती जा रही हैं, वह अपनी जिम्मेदारियों की परवाह कम करता जा रहा है तब तो खिलाड़यों को और भी ज्यादा इस बात का यान रखना चाहिए कि उनका आचरण उनके प्रशंसकों के लिए अनुकरणीय हो, देश के लिए गौरव का विषय हो। पर बाजार की संस्कृति इतनी हावी है कि जन भावनाओं की, जन अपेक्षा की कद्र करने की जरूरत ही नहीं समझी जाती। देश के सम्मान के बारे में सोचने की जरूरत नहीं समझी जाती। एक समय था जब देश के लिए किकेटरों ने कैरी पैकर की बड़ी बड़ी राशियों का प्रस्ताव ठुकरा दिया था। ये बहुत कम पैसों में खेलने वाले किकेटर थे जिनके लिए वह पैसा और ज्यादा जरूरी था। लेकिन आज जिन्हें पहले से बहुत ज्यादा पैसा मिल रहा है, अपने बहुत से जरूरी और बुनियादी सरोकारों को भूल गए हैं। शेन वार्न सट्टेबाजों से संबंघ साबित होने के बाद भी अपने देश की टीम में खेल रहे हैं, माराडोना खुद को शताब्दी का सर्वश्रेठ खिलाड़ी घोषित न किए जाने से नाराज हो रहे हैं, बायन लारा अपनी गर्लफेंड के लिए अपने खेल की तरफ यान न देने का आरोप झेल रहे हैं। ये घटनाएं खेल जगत में जो कुछ चल रहा है उसके बारे में बहुत आशा नहीं जगातीं। सम्मान ऐसी चीज है जो खरीदने से नहीं मिलती। उसका मतलब समझने की जरूरत है। अगर खिलाड़ियों को लगता है कि उन्हें दोषी ठहराने का फैसला गलत है तो वे इसके खिलाफ अपील कर सकते हैं। लेकिन दोषी साबित होने के आघार पर अगर यह फैसला किया जाता है कि उन्हें दिया गया सम्मान वापस ले लिया जाए तो यह गलत नहीं है। वैसे पुरस्कार तो एक प्रतीक है और उसे देना और वापस लेना तो महज एक औपचारिकता है। जन नायकों के सम्मान और असम्मान का असली फैसला जनता करती है। खिलाड़ियों को इस बात की फिक करनी चाहिए कि जनता उनके बारे में क्या सोचती है। अगर जनता उनके साथ है तो उन्हें किसी सम्मान के मिलने न मिलने की फिक नहीं करनी चाहिए। कितने खिलाड़ियों को यह विश्रास है कि जनता उनके साथ है
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