सोमवार, 21 दिसंबर 2009

ज़मीन से जुड़ने की ज़रुरत

राज्य बनने के बाद कांगेस अयक्ष सोनिया गांघी पहली बार यहां आ रही हैं। वे यहां सूखा राहत के काम का जायजा लेंगी और एक आमसभा को संबोघित करेंगी। वे यहां ऐसे समय में आ रही हैं जब राज्य में सूखा पड़ा हुआ है। और मरवाही में उपचुनाव होने वाला है जहां मुख्यमंन्नी अजीत जोगी भी उम्मीदवार हैं। यह एक ऐसा दौर है जब केंद्र में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाला गठबंघन सा में है और कांगेस विपक्ष में। उसके सामने मुद्दे ढेर सारे हैं लेकिन शायद जिस सकियता की उम्मीद देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी से की जाती है वह देखने में नहीं आ रही है। जिस ऐतिहासिक भूमिका की उम्मीद कांगेस जैसी पार्टी से की जाती है वह भी दूर-दूर तक नजर नहीं आती है। चुनाव सामने आते हैं तो पार्टी में थोड़ी बहुत सकियता दिखाई देती है। इसके अलावा पार्टी का गैर राजनीतिक, सामाजिक जीवन में कोई काम हो, कोई भागीदारी हो ऐसा दिखाई नहीं देता। छीसगढ़ में भी कांगेस का कमोबेश यही हाल है। अकाल पीड़ितों को राहत पहुंचाने के लिए कांगेसजनों ने कोई अभियान चलाया हो, ऐसा भी नहीं। हम उनके दौरे को इसी संदर्भ में देखना चाहेंगे। यह देखना चाहेंगे कि क्या एक नए राज्य में संगठन को पार्टी अयक्ष तात्कालिक उत्साह के अलावा कोई रचनात्मक दिशा दे पाती हैं सिर्फ छीसगढ़ मंें नहीं, आज कांगेस अयक्ष से सारे देश में अपने संगठन को ऐसी दिशा देने की जरूरत है।कांगेस का एक लंबा और गौरवशाली इतिहास रहा है। उसने अंगेजी शासन के खिलाफ आंदोलन छेड़ा, देश को आजादी दिलाई। इस आंदोलन में उसने देश के कोने कोने के, सभी वगोर्ं के लोगों को जोड़ा। और विविघताओं से भरे इस देश के सब लोगों को साथ लेकर चलने की प्रवृि के कारण लंबे समय तक उसने देश का नेतृत्व भी किया। देश के करीब हर प्रदेश में आज अगर किसी पार्टी की उल्लेख करने लायक मौजूदगी है तो वह कांगेस ही है।ऐसा इसलिए है क्योंकि सबको साथ लेकर चलने की उसकी विचारघारा है जो लोगों को विविघतापूर्ण संस्कृति वाले इस देश के लिए उपयुक्त लगती है। खासतौर पर आर्थिक, सामाजिक रूप से कमजोर तबके के लोग इस विचारघारा में सुरक्षा अनुभव करते हैं। घार्मिक अल्पसंख्यकों ने भी इस विचारघारा में अपने को अघिक सुरक्षित महसूस किया है क्योंकि इसमें सभी घर्मावलंबियों के प्रति समानता का भाव है। किसी संप्रदाय के प्रति कोई दुरागह नहीं है। मगर कांगेस कमशः अपने इतिहास से दूर होती गयी है। इसका नतीजा चुनावों में साफ नजर आता है। कई राज्यों में, जहां पहले कांगेस भारी बहुमत के साथ शासन में लंबे समय तक रही है, आज वह मुकाबले मंें ही नहीं गिनी जाती। कमजोर वगोर्ं के लोगों के लिए कई-कई विकल्प अस्तित्व में आ गए हैं। घर्मनिरपेक्ष विचारघारा की पतिनिघि भी कई पार्टियां अस्तित्व में आ गयी हैं। और कांगेस का परंपरागत समर्थक वर्ग कागंेंस से दूर हुआ है। और सा में उसकी जगह घीरे-ेघीरे भारतीय जनता पार्टी ने ले ली है और विपरीत विचारघारा वाली पार्टियों से भी रणनीतिगत गठजोड़ करके आज वह केंद्र में सारूढ़ है। हमारा खयाल है कि कांगेस को, और अयक्ष होने के नाते सोनिया गांघी को इसकी वजहें ढूंढनी चाहिए। और ढूंढने की भी जरूरत नहीं। वजहें दीवार पर लिखी इबारत की तरह साफ हैं। कांगेस आज जनता के बीच जाकर, जनता को साथ लेकर, जनता के लिए काम करने वाली पार्टी के रूप में नहीं जानी जाती। वह लंबे समय तक सा में रहने के कारण सुविघाभोगी हो चुके नेताओं और उनके आसपास लाभ उठाने वालों के जमावड़े के रूप में जानी जाती है। हालांकि दीगर पार्टियों की स्थिति भी बहुत भिन्न नहीं है लेकिन कांगेस के मामले मंें यह स्थिति अघिक दुखद है क्योंकि उसका एक इतिहास है और वर्तमान में उससे अघिक जिम्मेदारी पूर्ण भूमिका की अपेक्षा है और भविय में भी रहेगी। कांगेस अयक्ष को चाहिए कि वे पार्टी को जमीन से जोड़ें। रचनात्मक कामों से जोड़ें। जनता के बीच जाकर काम करने के लिए प्रेरित करें। और पार्टी में श्रम के सम्मान की संस्कृति विकसित करें।छीसगढ़ में ही देखें। कांगेस ने सूखा पीड़ित मजदूरों के लिए क्या किया जिस समय यहां से बड़े पैमाने पर पलायन हो रहा था, पार्टी के तमाम छोटे-बड़े लोग मुख्यमंन्नी चुनने के लिए राजघानी में इकट्ठा थे। गरीबों की बस्तियों में ताला लग रहा था और मंन्नी, अफसरों के लिए बंगले सज रहे थे। और उसके बाद से अब तक पार्टी ने सूखा पीड़ित गाँवों के लिए जनता के बीच जाकर कोई मदद इकट्ठा की हो, श्रमदान किया हो, लोगों को जोड़कर कोई काम करने की कोशिश की हो, ऐसा उदाहरण नहीं है। चुनाव और सा की दौड़ से परे पार्टी का कोई काम नहीं रह गया है, कोई पहचान नहीं रह गयी है, कोई उपयोगिता नहीं रह गयी है। जनता कब तक उससे मोह लगा कर बैठे। प्रतिंी भाजपा के पारिवारिक संगठन तो फिर भी जनता के बीच जाकर काम करते रहते हैं, सामाजिक कामों से जुड़े रहते हैं। कांगेस के साथ ऐसा नहीं है। कांगेस भाजपा से नहीं तो पश्चिम बंगाल की वाममोर्चा सरकार से ही प्रेरणा ले सकती है जो जनता के बीच जाकर, जनता के लिए काम करने के कारण ही रिकॉर्ड समय तक सा में रही है और आज भी बनी हुई है। सोनिया गांघी अगर इस मृतप्राय पार्टी को जिंदगी दे सकें, उसे उद्देश्य दे सकें तो उनका यह छोटा सा दौरा सार्थक हो सकता है।

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