बुधवार, 9 जून 2010

बस्तर को ढूंढ़ती रहीं निगाहें

विकास यात्रा का दूसरा चरण अभी पूरा नहीं हुआ है। कल इसने बलौदाबाजार में अस्थायी विराम लिया है। कुछ दिनों में यह सफर फिर शुरू हो जाएगा। गांवों शहरों से गुजरते हुए, नए नए अनुभवों के साथ।
प्रदेश सरकार की इस विकास यात्रा के समानांतर एक और यात्रा चल रही है। यह यात्रा है डाक्टर रमन सिंह के राजनेता से जननेता बनने की। एक जबरदस्त प्रदेश व्यापी जनसमर्थन उन्हें मिलता दिख रहा है। लोग उनकी एक झलक पाने के लिए दौड़ रहे हैं। उनसे हाथ मिलाने की होड़ लगी है। उन्हें छू लेने की ललक में हाथ बढ़ रहे हैं। एक गांव में किसी ने डाक्टर साहब के हाथ पकड़ लिए तो उन्हें कहना पड़ा- अरे भाई हाथ तो छोड़ो। लोग उन्हें छोडऩा नहीं चाह रहे। विकास रथ की खिड़की से झांकते डाक्टर रमन सिंह को देखकर लोग कितने रोमांचित हो रहे हैं यह इन दृश्यों को देखकर ही जाना जा सकता है।
बात हो रही थी डा. रमन सिंह के जन नेता बनने की। अगर अब तक वे पार्टी के आला नेताओं की पसंद थे तो यह यात्रा उन्हें जन जन के नेता के रूप में स्थापित करती चल रही है। बल्कि यह कहना अधिक ठीक होगा कि यह यात्रा इस बात पर से परदा हटाते चल रही है कि डाक्टर साहब जन जन के प्रिय नेता बन चुके हैं। पार्टी के उच्च पदस्थ रणनीतिकार बताते हैं- पार्टी के भीतर डा. रमन सिंह के नेतृत्व को मिलने वाली चुनौतियां इस यात्रा के साथ साथ क्षीण होती जा रही हैं। मन से या बेमन से, पार्टी के नेता चुनाव तक इस नेतृत्व की अनिवार्यता को स्वीकार करते चल रहे हैं।
यात्रा को बीच बीच में बारिश की फुहारें मिल रही हैं लेकिन आमतौर पर झुलसाने वाली दोपहरियां ही मिल रही हैं। सुबह स्थानीय पत्रकारों से चर्चा के बाद जब यात्रा शुरू होती है तो धूप चढ़ चुकी होती है। फिर शुरू होता है जगह जगह स्वागत का सिलसिला। कहीं खुली खिड़की से लोग डाक्टर साहब से मिल लेते हैं तो कहीं लिफ्ट के जरिए डाक्टर साहब ऊपर आ जाते हैं। यात्रा धीमी गति से चल रही है। गाड़ी चलाने वालों का कहना है कि ऐसी यात्रा थका देती है। रथ के आगे पीछे मिलाकर कोई पचास गाडिय़ां चलती रहती हैं। किसी कार रेस जैसा दृश्य दिखता है। जहां रथ रुका, पीछे चलती गाडिय़ों से तुरंत कमांडो कूदकर रथ को घेर लेते हैं। अति उत्साही लोगों को नियंत्रित करते हैं। लेकिन डाक्टर साहब इतनी सुरक्षा के बाद भी लोगों से मिल ही लेते हैं। उनसे हाथ मिला लेते हैं, उनसे फूलमालाएं ले लेते हैं।
महासमुंद के आगे, सरायपाली के रास्ते में उन्हें साइकिल लिए लड़कियों का एक समूह मिल गया। वे मुख्यमंत्री को साइकिल के लिए धन्यवाद कहना चाहती थीं। यह मुलाकात हो सकता है प्रायोजित हो लेकिन थी बहुत मर्मस्पर्शी। डाक्टर साहब लड़कियों के सिर पर हाथ फेरते हुए वात्सल्य से भरे नजर आए। लगता था वे सचमुच अपनी बेटियों से मिल रहे हैं। उन्होंने कहा-एक बेटी चेन्नई में है और इतनी सारी यहां मिल गईं। कुछ समय पहले श्रीमती वीणा सिंह का इंटरव्यू लिया था। इसमें उन्होंने बताया था कि डाक्टर साहब अपनी बिटिया से बहुत प्यार करते हैं। कितना भी तनाव हो, बेटी से बात करके काफूर हो जाता है। इन स्कूली लड़कियों को आश्ीर्वाद देते हुए डाक्टर साहब को निश्चित रूप से अपनी बेटी की याद आ रही थी। यह उनकी आंखों में उमड़ते प्यार को देखकर समझा जा सकता था। उनकी आवाज में भी बेटियों से मिलने की खुशी घुली हुई थी। बहुत से लोग कहते हैं कि मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाला और चार साल सरकार चला लेने वाला आदमी सीधा सादा नहीं हो सकता। लेकिन डाक्टर साहब से कुछ मुलाकातों के बाद लगता है कि उनके भीतर मानवीय संवेदनाएं किसी भी आम आदमी की तरह मौजूद हैं और महफूज भी।
यात्रा के दूसरे चरण में एक महत्वपूर्ण बात यह रही कि लोग लगातार बस्तर को याद करते रहे। कई जगहों पर ठीक ठाक भीड़ वाली आम सभाएं हुईं लेकिन वह मजा नहीं आया जो बस्तर में था। मैदानी इलाके में वह सरलता नहीं मिल रही है। मैनपुर गरियाबंद में कुछ कुछ माहौल बस्तर जैसा रहा लेकिन वह बात नहीं थी। काफिला आगे बढ़ा तो राजनीति की एक और ही शक्ल सामने आती गई। धनबल की भूमिका दिखने लगी। धनबल के कारण जो अनुशासनहीनता आती है वह भी दिखने लगी। इसे बड़े नेता कार्यकर्ताओं का अतिउत्साह कहते हैं। लेकिन यह इतनी मासूम चीज नहीं है।
सरायपाली से डा. रमन सिंह सुबह यात्रा पर रवाना हुए तो कुछ देर के लिए एक स्थानीय नेता के घर रुके। इसे लेकर कुछ लोगों से चर्चा हुई। कुछ का कहना था कि ये मशहूर डॉक्टर हैं और डाक्टर साहब के मित्र हैं। कुछ ने कहा कि डाक्टर साहब अभी तक किसी गरीब की कुटिया में नहीं गए हैं। संपन्न आदमी के घर जाने से अच्छा संदेश नहीं जाएगा। तीन रुपया किलो चावल देेने वाले मुख्यमंत्री को यात्रा के दौरान किसी के घर नहीं जाना था। कुछ लोगों ने कहा-यह चुनावी राजनीति की मजबूरी है। चुनाव के लिए पैसा तो संपन्न लोगों से ही मिलता है।
बलौदाबाजार की सभा के बाद सबको घर जाने की जल्दी थी। मुख्यमंत्री भोजन किए बगैर लौटे। चर्चा थी कि इतना थकने के बाद वे घर जाकर आराम करना चाहते होंगे। घर घर ही होता है। घर का कोई विकल्प नहीं होता। लेकिन बाद में पता चला कि सुबह डाक्टर साहब को दिल्ली जाना है। किसी को भी अचरज हो सकता है कि मुख्यमंत्री आराम कब करते होंगे, पढ़ते लिखते कब होंगे? यात्रा के साथ चल रहे दूसरे लोगों को थकने का हक नहीं है। उनका नेता खुद बिना थके आगे आगे चल रहा है।

(डा. रमन सिंह के पहले कार्यकाल में हुई विकास यात्रा से लौट कर लिखी गई टिप्पणी)

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