बुधवार, 9 जून 2010

चिलचिलाती धूप में चार कदम

दंतेवाड़ा से चार दिन पहले चिलचिलाती धूप में एक यात्रा शुरू हुई है। अभाव और संघर्ष में जीने वाले बस्तर के लोग धूप में यात्राओं के आदी हैं लेकिन यह यात्रा एक ऐसे व्यक्ति के नेतृत्व में हो रही है जिसकी सब सुखों तक पहुंच है। वह चाहे तो आराम से छांव में दोपहरी काट सकता है। मगर उसने जो जिम्मेदारी कंधों पर उठा रखी है, उसका तकाजा है कि वह धूप में घूम घूम कर देखे कि जनता का काम हो रहा है कि नहीं?
डा. रमन सिंह और उनके साथी इन दिनों विकास यात्रा पर हैं। खुद डा. रमन सिंह के शब्दों में, चार साल पहले दंतेश्वरी माई का आशीर्वाद लेकर उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में काम शुरू किया था। यात्रा के पहले दिन, वे एक बार फिर माई के दरबार में चार साल का हिसाब देने के लिए खड़े हुए थे। और यह संकल्प लेने के लिए भी कि अब तक जो काम किया है, उसे आगे और बेहतर ढंग से कर सकें।
उनका बस चलता तो शायद वे यात्रा के लिए कोई और मौसम चुन लेते। लेकिन चुनाव उन्हें चुनने का मौका नहीं देगा। बहुत से कामों के भूमिपूजन, शिलान्यास और लोकार्पण के लिए उनके पास अधिक समय नहीं है। वे इन कामों को एक साथ निबटा रहे हैं। जनता को अपनी सरकार की उपलब्धियों की याद दिला रहे हैं, यह समझा रहे हैं कि कौन सी चीज महंगी होने के लिए कौन जिम्मेदार है। और कौन सी चीज सस्ते में मिलने के लिए जनता को किसका शुक्रगुजार होना चाहिए।
राजा को अच्छा होना भी चाहिए और अच्छा दिखना भी चाहिए।
यात्रा की शुरुआत माई दंतेश्वरी के मंदिर से हुई। कमांडो से घिरे मंदिर में पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के साथ डा. रमन सिंह ने देवी की पूजा-अर्चना की। दंतेश्वरी वैसे तो पूरे छत्तीसगढ़ में अनेक जगह विराजित हैं लेकिन बस्तरवासियों के तो वे दिल में बसती हैं। वहां से यात्रा की शुरुआत मतलब माई का आशीर्वाद और बस्तरवासियों का समर्थन एक साथ पा लेना।
पहली सभा दंतेवाड़ा में हुई, उसमें जून की दोपहर में मेले जैसा माहौल था। लोगों के जत्थे पर जत्थे चले आ रहे थे। कुछ के पैरों में चप्पलें थीं, लेकिन ज्यादातर नंगे पांव। शहर के लोग कंकड़ों पर नंगे पांव चलने का दुस्साहस नहीं कर सकते। यह गांव जंगल के लोगों का ही जीवट है। दूर दूर से पैदल चले आते इन लोगों को देखकर शहरियों को शर्म आ जानी चाहिए जो सेहत की तरह तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं और तरह तरह की दवाएं खाकर जी रहे हैं। यह कितना अजीब है कि यह तबका खुद को विकसित और आदिवासियों को पिछड़ा समझता है।
यात्रा की योजना बनाते समय यह बात उठी थी कि इस भीषण गर्मी में कौन मुख्यमंत्री को देखने सुनने आएगा? लेकिन पहले चरण में यह आशंका अप्रत्याशित रूप से एकदम गलत साबित हुई है। खुद मुख्यमंत्री का कहना है कि उनके और उनके सहयोगियों के सारे अनुमान फेल हो गए। यात्रा के साथ जुट रहे भारतीय जनता पार्टी के लोगों को खुद भी इतनी भीड़ जुटने की उम्मीद नहीं थी। वे उत्साहित से ज्यादा चमत्कृत हैं। कुछ अनुभवी लोगों का कहना है कि यात्राएं और भीड़ तो उन्होंने पहले भी देखी है लेकिन इस बार लोगों की बॉडी लैंग्वेज कुछ और ही है। उसमें प्यार भी है, उम्मीद भी और भरोसा भी।
यात्रा का रास्ते भर उत्सुकता और उत्साह से भरे लोगों ने हाथ हिला हिला कर स्वागत किया और ऐसी ही विदाई भी दी। फूलों के हार और पंखुरियों से भरे थाल लेकर महिलाओं की लंबी कतारें घंटों इंतजार के बाद भी थकी हुई नहीं लगीं। घरों की चौखट, खिड़कियों, और छतों से लोगों ने यात्रा को सिर्फ देखा नहीं, हाथ भी हिलाए। यात्रा के दौरान लगातार यह अहसास बना रहा कि हम एक लोकप्रिय आदमी की यात्रा में शामिल हैं।
राजनीति के अनुभवी लोगों के बीच भीड़ जुटाने के कौशल पर भी चर्चा चलती रही। लेकिन वह मुद्दा नहीं बन सका। वैसे अगर भाजपा के संगठन ने यह भीड़ जमा की है तो भी यह पार्टी के लिए खुशी का विषय हो सकता है। इससे संगठन की सक्रियता और सामथ्र्य का पता चलता है। यह भीड़ सीधे वोटों में तब्दील होगी कि नहीं, इस पर भी चर्चा चलती रही। लेकिन भाजपा के कुछ बड़े नेताओं ने संयम का परिचय देते हुए कहा कि वे अतिउत्साह में आकर कोई राय नहीं बना रहे हैं। चुनाव में अभी समय है और जैसा कि मुख्यमंत्री ने अपने साक्षात्कार में कहा कि वे कांग्रेस को हल्के से नहीं लेते, उसे एक गंभीर चुनौती मानते हैं।
यात्रा में आम सभाओं और स्वागत सभाओं की जगहें निर्धारित हैं। लेकिन कई जगह भीड़ देखकर मुख्यमंत्री का काफिला रुक भी रहा है। पड़ाव दर पड़ाव उनके भाषण में नई चीजें जुड़ती जा रही हैं। यात्रा के दूसरे तीसरे दिन दो बूढ़ी महिलाओं की बातचीत का किस्सा इसमें शामिल हो गया। मुख्यमंत्री इस किस्से के जरिए बताते हैं कि लोग अब उन्हें तीन रुपए वाला डाक्टर रमन और पचीस पैसे वाले डाक्टर रमन के रूप में जानने लगे हैं। प्रदेश सरकार को महंगाई के लिए जिम्मेदार बताने के प्रचार से दुखी होते हुए उन्होंने दुर्ग की एक आमसभा में कहा-दाढ़ी वाला गलती करिस, मेछा वाले ला सजा हो गे। उनकी चुटीली बातों पर ठहाके लग रहे हैं। बहुत जगहों पर लोग स्वागत के लिए खड़े रह जा रहे हैं और काफिला निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक आगे निकल जा रहा है। उन्हें जुटाने वाले लोगों को सफाई देनी पड़ रही है, माफी मांगनी पड़ रही है। ऐसा एक एनाउंसमेंट हमने चलते चलते सुना।
कच्चे रास्तों, टूटे फूटे घरों और गरीब लोगों के बीच से गुजरते एसी गाडिय़ों के काफिले को देखकर मन में आता है कि यह लोकतंत्र की कैसी तस्वीर है? लेकिन फिर जहां काफिला रुकता है, जनता वहां भीड़ की शक्ल में, हाथों में फूल लिए मौजूद मिलती है। प्रदेश में जनता के पास वैसे भी विकल्प सीमित हैं। और सभी एसी गाडिय़ों वाले हैं। जनता को उन्हीं के बीच अपनी उम्मीद के लिए सहारा ढूंढना है। इस यात्रा में वह डा. रमन सिंह में यह सहारा ढूंढती नजर आती है।

(डा. रमन सिंह के पहले कार्यकाल में हुई विकास यात्रा से लौटकर लिखी गई टिप्पणी)

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