गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010

इनका दुख भी पूछें

भूकंप ने गुजरात के कई शहरों, कस्बों और गांवों को तबाह करके रख दिया है। यहां के लोगों का जो नुकसान हुआ है वह अकल्पनीय है। उसकी भरपाई आसानी से नहीं की जा सकती। शुरूआती बचाव और राहत के बाद अब इस बात की फिक करने का समय है कि भूकंप से तबाह हुए लोगों को फिर से किस तरह बसाया जाए। इस विनाश के बाद कई लोग अपनी जिंदगी नए सिरे से शुरू करेंगे। नए सिरे से रोजगार ढूंढेंगे, नए सिरे से काम खोजेंगे। केंद्र और राज्य सरकार इन सबकी मदद कर रही है। सारा देश इनकी मदद कर रहा है। इस मदद के बगैर तबाह लोगों का फिर से अपने पैरों पर खड़ा होना नामुमकिन तो नहीं कठिन जरूर है। कितने ही लोगों को सर छिपाने के लिए तम्बू मिल रहे हैं। खाने के लिए जो मिल जाए वह गनीमत है। व्यापार- व्यवसाय ठप्प है। कौन खरीदेगा, कौन बेचेगा- यह सवाल है। इन हालात में बहुत से परिवार अस्थायी रूप से अपने परिजनों के यहां चले गए हैं। और बाहर से रोजी रोटी कमाने के लिए गए मजदूरों को भी वहां से लौटना पड़ रहा है। देशबन्घु ने ऐसे मजदूरों के बारे में रिपोर्ट प्रकाशित की है। ईंटभट्ठों में काम करने वाले मजदूर भूकंप से घबराकर घर लौट रहे हैंं। उन्हें नहीं मालूम कि घर लौट कर उन्हें क्या मिलने वाला है। अकाल से घबराकर ये लोग अपना घर बार छोड़कर गए थे। अपने देस में रोजी रोटी न मिलने के कारण यहां से गए थे। छीसगढ़ से बड़ी संख्या में मजदूर देश के अलग अलग प्रदेशों में हर साल मजदूरी करने जाते हैं। देश के दूसरे प्रदेशों से भी संपन्न इलाकों की तरफ ऐसा पलायन होता है। अब ये लोग अपने अपने घर लौट रहे हैं। और एक मुद्दा यह भी है कि इनका क्या होगा। अब ये कहां जाएंगे, क्या खाएंगे। इनकी फिक कौन करेगा क्या इनके लिए भी स्थानीय स्तर पर कोई मदद जुटाई जाएगी। क्या इन्हें कोई काम मिल पाएगा पलायन करने वाले मजदूरों के बारे में हम कई बार लिख चुके हैं कि इनकी फिक की जानी चाहिए। हालांकि आदर्श स्थिति तो यह होगी कि काम न मिलने की मजबूरी से किसी को अपना घर बार छोड़कर कहीं न जाना पड़े। लेकिन जब तक रोजगार के इतने अवसर पैदा नहीं होते, विकास इतनी रफ्तार नहीं पकड़ता कि इतने सारे लोगों की यहीं जरूरत पड़े, तब तक इतना तो किया जा सकता है कि जो लोग बाहर रोजी रोटी तलाश रहे हैं उनकी सलामती का खयाल रखा जाए। गुजरात से लौटने वाले मजदूरों की खबरों के अलावा उन मजदूरों के बारे में भी खबरें आ रही हैं जो यहां से गए तो हैं लेकिन कहां हैं किसी को नहीं मालूम। छीसगढ़ के लवन से एक ऐसी ही खबर आई है जिसके मुताबिक यहां से हर साल की तरह बड़ी संख्या में लोग इघर उघर गए हैं। कुछ गुजरात भी गए हैं। उनका अतापता नहीं है। गुजरात से लौटने वाले श्रमिकों से यह भी पता चल रहा है कि उनके साथी बंघक के रूप में काम कर रहे हैं। इन खबरों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। यह पहली बार नहीं है कि प्रवासी मजदूरों को बंघक बनाकर रखे जाने की खबर आई है।मगर जो मजदूर ठेकेदारों के चंगुल से बचकर भाग निकलते हैं उनकी बताई कहानियां ही सामने आ पाती हैं। बाकी का क्या होता है, यह जानने का कोई तरीका स्थानीय प्रशासन के पास होना चाहिए। मगर फिलहाल थोड़ी सी चिंता उन मजदूरों की कर ली जानी चाहिए जो अकाल के मारे यहां से गए थे और जिन्हें भूकंप ने लौटा दिया। इन्हें निस्संदेह मदद की जरूरत है। और स्थानीय प्रशासन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अकाल राहत के काम में या कहीं और इनकी रोजी रोजी का प्रबंघ हो सके। इनसे जानकारी लेकर बचे हुए मजदूरों के बारे में भी पता किया जाना चाहिए। गुजरात के लिए सारे देश से जो मदद आयी है वह इस बात की गवाह है कि देश के पास संसाघनों की कमी नहीं है। बड़ी बड़ी न्नासदियों से निबटने के लायक संसाघन हैं। जरूरत उनके इस्तेमाल की है। भूकंप के बहाने इन संसाघनों के और बेहतर इस्तेमाल के बारे में सोचा जाना चाहिए। पलायन को मजबूर लोगों की मजबूरी दूर करने के बारे में इस नए संदर्भ में सोचना चाहिए।

6 टिप्‍पणियां:

  1. Gujraat me SEWA, Dastkaar, Banas Craft jaise NGOs ne jee jaan laga dee..lekin any sarkari sansthaon ka yogdaan utnahi zaroori tha..

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  2. bhaiya ye kab likha tha aapne? kyonki mxm jagah par hai, hai likha hua hai....

    dusri baat, kya yah font convert kar ke yaha dala gaya hai kyonki kuchhek jagah par akkshar toot te hue dikh rahe hain.

    aapko padhna hamesha hi accha anubhav raha hai, pravahmayi bhasha ke sath

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  3. ब्लॉग परिवार में आपका स्वागत है!लिखने के साथ साथ पढ़ते रहिये!!होली की शुभकामनायें...

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  4. आप और आपके परिवार को होली की शुभकामनाएँ...nice

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  5. आप सबको होली पर बधाई। और मेरा लिखा पढऩे व टिप्पणी करने के लिए हार्दिक धन्यवाद।

    मुझे इस ब्लॉग में स्पष्ट कर देना चाहिए था कि ये पुराना लेखन है। कुछ तकनीकी अल्पज्ञता और कुछ अलाली के कारण ऐसा नहीं कर सका। मेरे दो और ब्लॉग हैं-आसपास और मेरी दुनिया। इनमें नया लेखन है। पुराने पन्ने वाले ब्लॉग में पहले लिखे गए का संकलन है।

    दरअसल मेरे पास किसी जमाने में लिखे गए का एक संग्रह है। यह आईटीआर नटराज फॉण्ट में है। मैं इसे यूनिकोड और चाणक्य में कनवर्ट करके सुरक्षित रख लेना चाहता हूं। यह ब्लाग इसी प्रयास का हिस्सा है। हालांकि इसमें बहुत कुछ पठनीय और ऐसी बातें भी हैं जो अप्रासंगिक नहीं लगेंगी।

    मैं प्रतिभास के कनवर्टरों का आमतौर पर इस्तेमाल करता हूं। लेकिन इसकी सूची में आईटीआर नटराज से कनवर्ट करने की सुविधा मुझे नहीं दिखी। नई दुनिया के कनवर्टर से एक बार में 300 शब्द के हिसाब से कनवर्ट करते बैठा हूं।
    इस संबंध में कोई उपयोगी जानकारी हो तो अवश्य बताएं।

    मैं अपना ब्लॉग खोलता हूं तो आसपास वाला ब्लॉग खुलता है। इसके प्रोफाइल में जाने से दो और ब्लॉग का पता मिलता है। क्या ये दो और ब्लाग सीधे नहीं खुल सकते? किसी को अगर अपने ब्लाग मेरी दुनिया का पता देना हो तो क्या करना होगा?

    एग्रीगेटर क्या होता है? इससे कैसे जुड़ते हैं?

    रजनीश जी की बात सर आंखों पर। मुझे अन्य ब्लॉग्स पढऩे चाहिए।

    और संजीत जी की यह सलाह सही है कि पैराग्राफ होने चाहिए।

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