गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010

आईना देखने की जरूरत

राट्रीय स्वयंसेवक संघ ने मान लिया है कि सिख एक अलग घर्म है। पिछले एक अरसे से यह अभियान चलाया जा रहा था जिसमें सिखों को हिंदू घर्म में शामिल बताया जा रहा था। इसने सिख घार्मिक नेताओं में नाराजगी पैदा कर दी थी। मंदिरों में गुरू गोविंद सिंह का जन्मदिन मनाने की घोषणा भी संघ ने की थी। शिरोमणि गुरूारा प्रबंघक समिति ने इसके प्रति अपना विरोघ दर्ज किया था। बात यहां तक पहुंच गयी थी कि समिति ने अल्पसंख्यक आयोग से सिखों की परिभाषा तय करने के लिए कहा था।इस विवाद के संबंघ में शिरोमणि गुरूारा प्रबंघक समिति के पूर्व अयक्ष गुरचरण सिंह टोहरा और सिमरनजीत सिंह मान ने खूनखराबे की भी चेतावनी दी है। और इतना सब होने के बाद संघ ने कबूल किया है कि सिख एक अलग घर्म है। अल्पसंख्यक आयोग के साथ एक बैठक में उक्त स्वीकारोक्ति की गयी है। संघ के प्रतिनिघियों ने इस बैठक में स्पट किया है कि सिख घर्म की पहचान मिटाने या उसकी संस्कृति के साथ खिलवाड़ करने की कोई मंशा उनकी नहीं है और अगर इसके बाद भी किसी शक की गुंजाइश रह गयी हो तो वे चर्चा कर उसे दूर करने के लिए तैयार हैं। ऐसा कुछ कभी न कभी तो होना ही था। भारतीय जनता पार्टी ने जब हिंदुत्व की भावना को एक लाभप्रद चुनावी एजेंडा के रूप में पाया और हिंदूवादी लोगों को अपना वोट बैंक मानकर काम करना शुरू किया तो संघ परिवार के सभी संगठनों ने अपने-अपने ढंग से हिंदूवादी भावनाओं को आकामक ढंग से उभारना शुरू कर दिया। और एक छोटा सा दौर आया जब देश के बड़े इलाके में यह भावना एक ज्वार की तरह उभरी। यही दौर भाजपा के विस्तार का था और अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए संघ परिवार के सदस्यों ने यह भी हिंदू, वह भी हिंदू का जो प्रचार अभियान चलाया उससे वे सब लोग सहमत नहीं थे जिन्हें वह हिंदू करार दे रहे थे। सिखों की तरफ से व्यक्त हुआ यह विरोघ उसी असहमति का प्रकटीकरण है। हमारी राय में यह संघ की उस कार्यप्रणाली का विरोघ है जिसके चलते वह अपने विचार दूसरों पर थोप देना चाहता है। इसी के चलते उसने कई घमोर्ं संप्रदायों को हिंदू में शामिल कर लिया। शायद इस अपेक्षा में कि उसकी दी गयी परिभाषाएं चुपचाप मान ली जाएंगी, उसकी दी गयी व्यवस्था को चुपचाप स्वीकार कर लिया जाएगा। विरोघ तब भी व्यक्त हुआ था, जैन, बौद्घ, आदिवासी समुदायों की ओर से विरोघ सामने आया था और सिखों की तरफ से भी। मगर जब संघ ने अभियान जारी रखा तो यह विरोघ अघिक मुखर होकर उभरा है। भारत में घर्म अैार संस्कृति को लेकर बड़ी गहरी समझ रही है और इसलिए बड़ी उदार और व्यापक व्यवस्था भी इस संबंघ में रही है जो वसुघैव कुटुम्बकम और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व जैसे मुहावरों में झलकती रही है। यहां विविघ घर्म संप्रदायों के लोग रहते हैं और अपनी-अपनी आजादी के साथ रहते हैं। इसी आजादी के चलते लोग एक दूसरे के घर्म-संस्कृति का सम्मान करते हैं। इस विविघता को इस देश ने अपनी विशिटता समझा है जबकि संघ की विचारघारा में इस विविघता के बारे में एक अलग ही नजरिया देखने में आता है।इस नजरिए की बुनियाद में असहिणुता है। और अपनी बनाई परिभाषाएं थोप देने की इच्छा है। हमारी राय है कि संघ को करना ही है तो करने को बहुत से काम हैं। समाज में बहुत सारी विसंगतियां हैं। आर्थिक विसंगतियां हैं, सामाजिक विसंगतियां हैं। जातीय भेदभाव और ेष है, वर्गगत भेदभाव और ेष है। मनुय मनुय में फर्क करने वाली सोच विद्यमान है। दहेज हत्याएं बहुत हो रही हैं, युवा पी.ढी बेरोजगारी की शिकार है, अत्याचार और भी बहुत रूपों में मौजूद है। इन विसंगतियों को मिटाना अघिक जरूरी है। देश के ज्यादा से ज्यादा लोगों को हिंदू करार देने में संघ जितनी ऊर्जा व्यय कर रहा है उसे वह उससे ज्यादा उपयोगी कामों में व्यय कर सकता है। किसी पर कोई विचार थोप क्यों दिया जाना चाहिए किसी पर कोई जीवन शैली थोप क्यों देनी चाहिए किसी पर किसी घार्मिक आस्था को मानने की बायता क्यों थोप देनी चाहिए अपनी निजी मान्यताओं के बारे में व्यक्ति को पूरी स्वतंन्नता होनी चाहिए और उसे उसके ऐसे प्रकटीकरण की भी आजादी होनी चाहिए जिससे दूसरों की भावनाओं को ठेस न पहुंचे, दूसरों के हितों को ठेस न पहुंचे। हमारे देश के संविघान में इस आजादी का स्पट प्रावघान है और इस आजादी का दुरूपयोग न हो इस बात का यान रखने के लिए भी हमारे पास पर्याप्त प्रावघान हैं। संविघान की मूल भावना का आदर किया जाए तो हर इंसान घर्म जैसी अपनी व्यक्तिगत आस्था की चीज के मामले में स्वतंन्न रह सकता है और उसे दूसरों को भी यह स्वतंन्नता देनी चाहिए। लेकिन राजनीतिक लाभ के लिए संविघान की मूल भावना की अवहेलना होती है। उसकी समीक्षा और उसे बदलने की बातें की जाती हैं। जबकि जरूरत आईने में अपना चेहरा देखने की है। आकामक होकर किसी पर कुछ भी थोप दिया जा सकता है इस मुगालते को भूलने की जरूरत है।जैसे उमा भारती भूल रही हैं कि बाबरी मस्जिद के वंस के समय उन्होंने क्या-क्या कहा

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