गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010

सोनिया की ऐतिहासिक सभा

मुंगेली में में कांगेस अयक्ष सोनिया गांघी की आमसभा ऐतिहासिक रही है। यह उनकी इस राज्य में पहली सभा थी पर इस इलाके में राज्य बनने से पहले वे कई सभाओं को संबोघित कर चुकी हैं। इनमें से कल की सभा सबसे बड़ी थी। और जहां तक लोगों की याददाश्त जाती है, छीसगढ़ के इतिहास में बहुत कम सभाओं में इतनी ज्यादा भीड़ इकट्ठा हुई है। एक लाख से ज्यादा लोग इस सभा में उपस्थित थे जो राज्य के दूर दूर के इलाकों से आए थे। कुछ लोगों के मुताबिक डेढ़ लाख की भीड़ थी तो कुछ के मुताबिक ढाई तीन लाख की। मगर यह सभा छीसगढ़ की अब तक की चुनी हुई भीड़ भरी सभाओं में थी इस पर लोग एकराय हैं। मरवाही में होने जा रहे उपचुनाव के अलावा राज्य में इस समय कोई विशेष राजनीतिक कारण नहीं है जिसके कारण किसी नेता की आमसभा के प्रति लोगों में इतनी उत्सुकता हो। आमसभाओं में पार्टी की तरफ से लोगों को जुटाया जाता है, इसमें कोई शक नहीं लेकिन फिर भी इतनी भीड़ सिर्फ किसी पार्टी के जुटाए नहीं जुटती। और इतनी बड़ी भीड़ इकट्ठा करने की तैयारियों का कोई हल्ला भी नहीं था। ऐसे मंें सोनिया की सभा में उमड़ी भीड़ को क्या समझा जाए क्या यह उनकी बढ़ती हुई व्यक्तिगत लोकप्रियता का संकेत है क्या यह वाजपेयी सरकार की कम होती लोकप्रियता और जनता के बीच किसी विकल्प की तलाश का संकेत है क्या यह राज्य निर्माण मंें कांगेस की ऐतिहासिक भूमिका के प्रति जनता की भावनाओं की झलक है या यह एक आदिवासी को मुख्यमंन्नी बनाए जाने की प्रतिकिया व्यक्त करने को जुटी भीड़ ही कारण बहुत से हो सकते हैं और हो सकता है कि यह सबका मिला जुला असर हो। लेकिन इस अप्रत्याशित भीड़ के जुटने के पीछे जो कारण हैं वे उत्सुकता और दिलचस्पी तो पैदा करते हैं। कांगेस चाहे तो इसे अपनी, अपनी सरकार की और अपने मुख्यमंन्नी की जनता के बीच छवि और जनता की भावनाओं का प्रकटीकरण मान सकती है। इस बात मंें कोई शक नहीं कि एक आदिवासी को मुख्यमंन्नी बनाकर कांगेस ने एक बड़ा, उत्साह जगाने वाला कदम उठाया है। इससे राज्य की बहुसंख्य उपेक्षित जनता के बीच एक अच्छा संकेत गया है।फिर मुख्यमंन्नी अजीत जोगी ने अपनी प्राथमिकताओं के जरिए भी यह संदेश दिए हैं कि वे कमजोर वगोर्ं के हितों को यान मंें रखकर काम कर रहे हैं। यह राट्रीय स्तर पर कांगेस और सोनिया की बढ़ती लोकप्रियता की झलक भी हो सकती है और परोक्ष रूप से वाजपेयी सरकार की कम होती लोकप्रियता की झलक भी। अटलविहारी वाजपेयी की व्यक्तिगत लोकप्रियता के बारे में तो नहीं लेकिन उनकी सरकार के अब तक के कार्यकाल के बारे में कहा जा सकता है कि इसने जनता की उम्मीदें कम की है। वाजपेयीजी ने हालांकि विपरीत विचारघारा वाले दलों को साथ लेकर इतने लंबे समय तक सरकार चलाई है और यह बात अपने आप में एक उपलब्घि है लेकिन यह भी सच है कि इस सरकार के दलों के बीच आपसी झगड़े बहुत हैं और संघ परिवार के सदस्य देश में जो माहौल बना रहे हैं वह घार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए असुरक्षा पैदा करने वाला है।और इनके प्रति सरकार का रवैया अनुदार नहीं है। सरकार की आर्थिक नीतियां आर्थिक टि से कमजोर लोगों का हित नहीं कर पा रही हैं और एक गठबंघन सरकार के चलते सामाजिक समरसता की जिस संस्कृति को पनपना था वह नहीं पनप रही है। उल्टे नफरत पर आघारित, जनता को तोड़ने वाली संस्कृति को हवा मिल रही है। कांगेस और सोनिया के नेतृत्व पर सशक्त विपक्ष की भूमिका न निभा पाने का आरोप लगाया जाता रहा है लेकिन संगठन चुनावों से एक बार फिर सोनिया गांघी की पार्टी में सर्वोタाता सिद्घ हुई है और विपक्ष की नेता के रूप में उनके तेवर हाल के दिनों में काफी तीखे हुए हैं। जो भी हो, कांगेस के लिए यह भीड़ उत्साहजनक है। अगर वह राज्य में अपनी स्थिति के बारे में इससे कोई संकेत निकालना चाहे तो वह आशाजनक ही होगा। मुख्यमंन्नी और राज्य सरकार अगर इसे अपनी छवि के बारे में कोई संकेत मानें तो वह भी उत्साहवर्घक ही होगा। मगर पार्टी के लिए यह लाभप्रद तब होगा जब वह इस भीड़ को वोटों में तब्दील करना सुनिश्चित कर सके। आमसभाओं में जुटने वाली भीड़ का सीघा मतलब चुनाव में पड़ने वाले वोट नहीं होते। और फिर किसी बड़े चुनाव में अभी वक्त है। कांगेस के लिए यह ऐतिहासिक सभा उत्साह का कारण तो है लेकिन इससे ज्यादा वह एक चुनौती है कि वह अगले चुनावों तक इस कारण को बनाए रखे। उन उम्मीदों को बनाए रखे जिनसे बंघकर जनता इस आमसभा में आई थी।

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