गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010

स्थिरता से बड़ी जिम्मेदारी

देश के संवैघानिक प्रमुख राट्रपति के आर नारायणन ने एक बार फिर संविघान पर की जा रही चोट और उसे लोकतंन्न से दूर ले जाने की कोशिशों पर प्रतिकिया व्यक्त की है। गणतंन्न दिवस की पूर्व संया पर देश के नाम अपने संबोघन में उन्होंने कहा है कि देश को राजनीतिक स्थिरता की जो जरूरत बताई जा रही है उससे ज्यादा जरूरी सरकार की जनता के प्रति जवाबदेही है। उन्होंने सीमित मताघिकार और अप्रत्यक्ष प्रणाली की हो रही वकालत पर चोट करते हुए इसे एक विडंबना बताया है कि पाकिस्तान के फौजी शासक अयूब खान के विचारों के साथ गांघी का नाम जोड़ा जा रहा है। राट्रपति का यह एक और उल्लेखनीय संबोघन देश के नाम है। इससे पहले उन्होंने संविघान समीक्षा और संविघान संशोघन की कोशिशों के संदर्भ में कहा था कि जरूरत संविघान में संशोघन की नहीं, उसके कियान्वयन में होने वाली ढिलाई दूर करने की है। राट्रपति ने इस बार कहा है कि संविघान बनाने वालों ने जनता पर भरोसा किया था इसलिए सरकार चुनने का अघिकार उसे दिया था। यानी आज भी जो लोग इस व्यवस्था में खामी देख रहे हैं उन्हें भी जनता पर भरोसा करना चाहिए। लोकसभा, विघानसभाओं का कार्यकाल सुनिश्चित होना चाहिए, सरकार के खिलाफ अविश्वास मत लाया जाए तो विकल्प के साथ लाया जाना चाहिए- यह बातें कुछ अरसे से की जा रही हैं। चुनाव आयोग के ५० साल होने के अवसर पर आयोजित समारोह में प्रघानमंन्नी अटल विहारी वाजपेयी ने इसी तरह की बातें कही हैं। संविघान समीक्षा की बातें भी उठ रही हैं। संविघान मंें कमजोरियां देखने के तमाम प्रयासों पर राट्रपति ने अपने संबोघन में यान आकर्षित किया है। आम तौर पर राट्रपति के भाषण रस्मी माने जाते हैं लेकिन श्री नारायणन ने इस मौके का उपयोग देश के लिए महत्वपूर्ण और उपयोगी बौद्घिक चर्चा करने के लिए किया है। और देश को लोकतंन्न से दूर ले जाने की कोशिशों से देशवासियों को सावघान भी किया है। देश का राजनीतिक तंन्न अघिकाघिक बाहरी शक्तियों से संचालित हो रहा है, निहित स्वाथांेर्ं से प्रेरित हो रहा है, उसमें जनहित की चिंता कम होती जा रही है, जनविरोघी नीतियां अघिक प्रश्रय पा रही हैं, विकास के फायदे जनता के लिए कम बाजार पर प्रभुत्व रखने वाली ताकतों को अघिक हो रहे हैं यह आज देश और देशवासियों के सामने खड़ी कुछ चिंताएं हैं। कुछ समय पहले इन चिंताओं को सिर्फ सुना जाता था, अब महसूस किया जाने लगा है। बहुराट्रीय आर्थिक ताकतों के आगे देश की मौलिक अर्थव्यवस्था के पांव उखड़ रहे हैं। एक तरफ गांघी की अर्थव्यवस्था से प्रेरणा लेने की जरूरत महसूस की जा रही है, जनता को आत्मनिर्भर बनाने की कोशिशें हो रही हैं, जनता के भरोसे देश को आत्मनिर्भर बनाने की कोशिशें हो रही हैं, जनता पर भरोसा किया जा रहा है तब दूसरी ओर तंन्न को जनता से दूर ले जाने की कोशिशें भी हो रही हैं। लोकसभा का कार्यकाल सुनिश्चित करने की बात की जा रही है। सुनने मंें यह बात कई लोगों को अच्छी लग सकती है लेकिन देश को नियम कानून से उपजी स्थिरता की जरूरत नहीं है। कुछ लोगों को सा में बनाए रखने की मूल चिंता से पैदा हुई स्थिरता देश की जरूरत नहीं है। एक बार चुन लिए जाने के बाद मनमानी करने की छूट पाने की ललक से जिस राजनीतिक स्थिरता की बात की जा रही है वह देश को नहीं चाहिए। ये सारी कोशिशें तंन्न को जनता के कब्जे से निकालने की हैं, उसे जनता से दूर ले जाने की हैं। यह जनता की नजरों से दूर रहकर अपनी मर्जी के कुछ भी करने का लाइसेंस पाने की कोशिश है। राट्रपति ने बड़ी अच्छी बात कही है कि स्थिरता से ज्यादा जरूरत जवाबदेही की है। जनता के प्रति जवाबदेही की। जो तंन्न जनता के प्रति जितना ज्यादा जवाबदेह होगा वह ज्यादा से ज्यादा लोकतंन्न के करीब होगा। जनता के पति वही तंन्न जवाबदेह होगा जो जनता का हो, जनता के ारा चलाया जाए, जनता के लिए चलाया जाए। घनबल- बाहुबल से, छल से, नेताओं-अफसरों-पूंजीपतियों के लिए, स्वार्थी लोगांें का तंन्न लोकतंन्न नहीं हो सकता और लोकतंन्न की अपेक्षाओं से, उसकी बायताओं से उसे घुटन ही होगी। आज जिस राजनीतिक स्थिरता की बात की जा रही है उसमें अघिकारों की चिंता दिखाई देती है, कर्तव्यों की नहीं। हम राट्रपति की बातों से सहमत हैं। देश को जरूरत सरकार की जवाबदारी से है। यह सरकार की कमजोरी हो सकती है कि वह अपनी जवाबदारियों को पूरा न कर सके। यह उसमें शामिल लोगों की नीयत का खोट हो सकता है, उनके स्वाथोर्ं का नतीजा हो सकता है, इ्‌च्छा शक्ति की कमी का परिणाम हो सकता है कि जनता के प्रति जवाबदारियां पूरी न हो सकें। लेकिन इनके लिए सुघार किसमें किया जाए यह सोचना चाहिए। लोकतंन्न की मूल भावना यह है कि जनता पर भरोसा किया जाए। और देश की जनता ने अपनी परिपक्वता के सबूत बार बार दिए हैं। दिक्कत यह है कि उसके सामने कुआं और खाई में से किसी एक को चुनने के विकल्प रख दिए जाते हैं। सुघार की असली जरूरत यहां है।

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